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________________ २६२ पुद्गल-कोश (घ) वड्ढंतो उण बाहि लोयत्थं चेव पासई दव्वं । सुहुमयरं सुहुमयर परमोही जाव परमाणु॥ -विशेभा० गा ६०६ xx x सूक्ष्मतरं, सूक्ष्मतमं यावत् परमावधिः सर्वसूक्ष्म परमाणुमपि पश्यति । -विशेभा० गा ६०६ टीका । पृ. २७२ लोक व्यवहार वृद्धिंगत प्राप्त हुआ अवधि ज्ञान, लोक में स्थित द्रव्य को ही सूक्ष्मतर रूप में देखता है और परमावधि ज्ञानी एक परमाणु भी देखता है । x x x परमाणुआदियाइपरमाण्वादिकानि अंतिमखधति आपश्चिम स्कंधादिति मुत्तिदव्वाइ मूर्तिद्रव्याणि जं यस्मात् पस्सदि पश्यति जानीते ताणि तानि पच्चक्खं साक्षात् तं तत् ओहिदसणं अवधि-दर्शन मिति द्रष्टव्यम्। परमाणुमादि कादूण जाव पच्छिमखंधोत्ति टिदपोग्गलवच्चाणमवगमादो पच्चक्खादो जो पुत्वमेव सुवसत्ती विसयउवजोगो ओहिणाणुप्पत्तिणिमित्तो तं ओहिदंसणमिदि घेत्तव्वं, अण्णहा णाण-दसणाणं भेदाभावादोx xx। -षट् खण्ड० २ । भा १ । सू ५६ टीका । पुस्तक ७ । पृ० १०२ परमाणु से अन्तिम स्कंध पर्यन्त जितने मूर्तिक द्रव्य हैं उन्हें जिसके द्वारा साक्षात् देखता है या जानता है वह अवधि दर्शन है-ऐसा जानना चाहिए। परमाणु से लेकर अन्तिम स्कंध पर्यन्त जो पुद्गल द्रव्य स्थित है उनके प्रत्यक्ष ज्ञान से पूर्व ही जो अवधि ज्ञान की उत्पत्ति का निमित्त भूत स्वशक्ति विषयक उपयोग होता है वही अवधि दर्शन है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । अन्यथा ज्ञान और दर्शन में कोई भेद नहीं रहता। •४ केवली को परमाणु पुद्गल का ज्ञान (क) केवली में एक समय दोनों उपयोग का निषेध केवली णं भंते ! इमं रयणप्पमं पुढवि आगारेहि हेतूहि उवमाहि दिढतेहि वण्णेहिं संठाणेहिं पमाहिं पडोयारेहिं नं समयं जाणइ तं समयं पासइ जं समयं पासइ तं समयं जाणइ ? गोयमा! जो इण? सम8। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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