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________________ ( 25 ) सूक्ष्मता को नहीं छोड़ता इसलिए उसमें अचाक्षुषपना ही रहता है । एक दूसरा सूक्ष्म परिणामवाला स्कंध जिसका यद्यपि भेद हुआ तथापि दूसरे संघात से संयोग हो गया अतः सूक्ष्मपना निकालकर उसमें स्थूलपने की उत्पत्ति होती है और इसलिए वह चाक्षुष हो जाता है । अतः सर्वार्थसिद्धि में कहा गया है कि भेद और संघात से चाक्षुष स्कंध बनता है | कोयला जलकर राख हो जाता है, इसी पुद्गल का कोयला रूप पर्याय का व्यय हुआ है और क्षार रूप पर्याय का उत्पाद हुआ है । किन्तु दोनों अवस्थाओं में पुद्गल द्रव्य का अस्तित्व बना रहता है। पुद्गलपने का कभी भी नाश नहीं होता यही उसकी ध्रुवता है । पुद्गलादिक द्रव्य को अपने रूपादि गुणों के द्वारा भेद को प्राप्त होते हैं । रूपादिक पुद्गलादि के गुण हैं । तथा इनके विकार विशेष रूप से भेद को प्राप्त होते हैं अतः वे पर्याय कहलाते हैं । पुद्गल बन्ध की अपेक्षा अनेक प्रदेश रूप शक्ति से प्रदेश-प्रचय बन जाता है किन्तु काल द्रव्य शक्ति और प्रदेश रूप होने के कारण उसमें प्रदेश प्रचय नहीं बनता । युक्त होने के कारण इनका व्यक्ति दोनों रूप से एक एक पुद्गल परमाणु मन्द गति से एक आकाश प्रदेश से दूसरे आकाश प्रदेश पर जाता है और उसमें कुछ समय भी लगता है । यह समय ही काल द्रव्य की पर्याय है जो कि अति सूक्ष्म होने से निरंश है । ओज आहार सभी दंडकों के जीव करते हैं । वह आहार अनंत प्रदेशी पुद्गल स्कंध का है । नारकी के ओज आहार है पर मनोभक्षी आहार नहीं है । देवों में दोनों प्रकार के आहार है । तिर्यंच व मनुष्यों के ओज आहार है परन्तु मनोभक्षी आहार नहीं है । लोक के मध्य से लेकर ऊपर, नीचे और तिरछे क्रम से स्थित आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं । अनु शब्द 'आनुपूर्वी' अर्थ में समसित है । इसलिए अनुश्रेणी का अर्थ श्रेणी को आनुपूर्वी मे होता है । इस प्रकार की गति जीव और पुद्गलों की होती है | इस प्रकार पुद्गलों की जो वाली गति होती है वह अनुश्रेणी ही होती है । हां, है वह अनुश्रेणी की गति होती है और विश्रेणी की । लोक के अन्त को प्राप्त कराने इससे अतिरिक्त जो गति होती वर्ण, गन्ध, रस और वर्ण का पुद्गल द्रव्य से सदा सम्बन्ध है- - यह बतलाने के लिए 'मतुण्' प्रत्यय किया जाता है । जैसे- 'क्षीरिणो न्यग्रोधाः ' । यहाँ न्यग्रोध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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