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________________ पुद्गल-कोश १६५ तमिति । छायागतिः - छायामनुसृत्य तदुपष्टम्भेन वा समाश्रयितु गतिः छायागतिः, छायानुपातगतिरिति छायाया: स्वनिमित्त पुरुषादेरनुपातेन - अनुसरणेन गतिः छायानुपातगतिः, तथाहि - छायापुरुषमनुसरति न तु पुरुषः छायामतश्च्छायाया अनुपातगतिः । विहायोगति अर्थात् आकाशप्रदेश में जो गति होती है उसे विहायोगति कहते हैं । पुद्गल सम्बन्धी विहायोगति पाँच प्रकार की होती है, यथा - ( १ ) स्पृशद्गति, (२) अस्पृशद्गति, (३) पुद्गलगति, (४) छायागति, (५) छायानुपातगति । - १ - परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध परस्पर एक दूसरे को स्पर्श करते हुए जो गति करते हैं उसे स्पृशद्गति कहते हैं । २ - इसके विपरीत अर्थात् परस्पर स्पर्श किये बिना परमाणु आदि की जो गति होती है उसे अस्पृशद्गति कहते हैं, यथा- परस्पर स्पर्श किये बिना परमाणु पुद्गल एक समय में एक लोकांत से दूसरे लोकांत तक जा सकता है । ३—–परमाणु पुद्गल यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध की जो स्वाभाविक गति होती है। उसे पुद्गलगति कहते हैं । ४ - छाया के अनुसार अर्थात् छाया के अवलम्बन से जो गति होती है उसको छायागति कहते हैं अथवा छाया का आश्रय पाने के लिए जो गति होती है उसे छायागति कहते हैं - यथा - घोड़े की छाया, हाथी की किन्नर की छाया, महोरग की छाया, गन्धर्व की छाया, छाया, छत्र की छाया के अनुसार जो गति होती है उसे छायागति कहते हैं । छाया, मनुष्य की छाया, वृषभ की छाया, रथ की ५ - छायानुपातगति - स्वकीय निमित्त पुरुषादि की गति के अनुसार छाया की गति । जिस प्रकार छाया पुरुषादि का अनुसरण करती है, किन्तु पुरुषादि छाया का अनुसरण नहीं करता है - यह छायानुपातगति है । -१२·०८.०६ लोकबाह्यगति चउहि ठाणेहिं जीवा य पोग्गला य णो संचातेंति बहिया लोगंता गमणताते, तंजहा - गतिअभावेणं णिरुवग्गहताते, लुक्खताते, लोगाणु भावेणं । Jain Education International - ठाण० स्था ४ । उ ३ । सू ३३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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