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________________ ९४ पुद्गल-कोश ___ इसी प्रकार क्षेत्राधिकार की अपेक्षा एकप्रदेशावगाहना आदि में स्थानान्तर-संक्रम की अपेक्षा काल से मार्गणा करनी चाहिए। अर्थात् इसी प्रकार द्रव्यपरिणाम की तरह क्षेत्र में क्षेत्र की विवक्षा कर एकप्रदेशावगाही आदि पुद्गल भेदों में स्थानांतरगमन अर्थात् एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने की अपेक्षा काल से अप्रदेशों की मार्गणा जैसे क्षेत्र से है वैसे ही अवगाहना से भी मार्गणा जाननी चाहिए ॥१०॥ संकोय - विकोय पि हु पडुच्च ओगाहणाय एमेव । तह सुहुम - बायर - निरेय - सेय - सद्दाइपरिणामं ॥११॥ एवं जो सव्वो च्चिय परिणामो पुग्गलाण इह समये । तं तं पडुच्च एसि, कालेणं अप्पएसत्तं ॥१२॥ पाठान्तर-एवं जो सब्वोऽवि अ।.. . अभयदेवसूरि टीका-'एसि' ति पुद्गलानाम् इत्यर्थः । रत्नसिंहसूरि टीका – एवं उक्तप्रकारेण य: सर्वोऽपि च परिणामः पर्यायान्तरेण भवनं पुद्गलानामिति परमाणूनां स्कन्धानां चेहेति जिनप्रवचने वणितः ; तं तं परिणाममाश्रित्य 'एसि' इति पुद्गलानामेकसमयस्थितिकानां कालेनाप्रदेशत्वं ज्ञ यमिति। इस प्रकार पुद्गलों के जो सब परिणाम होते हैं उन-उन सर्व परिणामों की अपेक्षा-पुदगलों का काल की अपेक्षा अप्रदेशीपन है। अर्थात् पुद्गल-स्कंध पुद्गल और परमाणु पुद्गल जो हैं वे सब पुद्गल जो एक समय की स्थितिवाले हैं उनको काल की अपेक्षा अप्रदेशी जानना चाहिए। कालेण अप्पएसा, एवं भावापएसएहितो। होंति असंखिज्जगुणा, सिद्धा परिणामबाहुल्ला ॥१३॥ एतो दव्वादेसेण अप्पएसा हवंतिऽसंखगुणा। के पुणते ? परमाणू, कह ते बहुय? त्ति तं सुणसु ॥१४॥ अणु-संखेज्जपएसिय-असंखऽणंतप्पएसिआ चेव । चउरो च्चिय रासी पोग्गलाण लोए अणंताणं ॥१५॥ तत्थाणंतेहितो *सुत्तेऽणंतप्पसिएहितो। जेणप्पएसट्टाए भणिया अणुओ अणंतगुणा ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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