SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल-कोश ०७२ १३ मनोज पुद्गल तथा अमनोज्ञ पुद्गल एवं xxx मणुन्ना ( दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, तं जहा – मणुन्ना चेव अमणुन्ना चेव ) । ६३ – ठाण● स्था २ । उ ३ । सू ८२ | पृ० १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा - मनोज्ञ पुद्गल तथा अमनोज्ञ पुद्गल । टीका- | मनसा ज्ञायन्ते शोभना एत इत्येवं विकल्पमुत्पादयन्तः शोभनत्वप्रकर्षाद्य ते मनोज्ञाः । x x x सुन्दरपन के प्रकर्ष से - जो मन से – ये सब जाने जाते हैं - ऐसे विकल्प को उत्पन्न करनेवाले पुद्गल - मनोज्ञ पुद्गल कहलाते हैं । इसके विपरीत अमनोज्ञ पुद्गल जानना चाहिए । ०७२ १४ मनोरम ( मनाम ) तथा अमनोरम ( अमनाम ) पुद्गल एवं xxx मणामा ( दुविहा पोग्गला पन्नता, तंजहा- मणामा चेव अमणामा चेव । ) ठाण • स्था २ । उ ३ । सू ८२ । पृ० १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा - मनोरम पुद्गल तथा अमनोरम पुद्गल । टीका - x = x । मनसो मता- वल्लभाः सर्वस्याप्युपभोक्तुः सर्वदा च शोभनत्वप्रकर्षादेव निरुक्तविधिना मणामा । × × × । सुन्दर रूप के प्रकर्ष से जो सब उपभोग करनेवाले- मन को जो सदा बल्लभकारी पुद्गल हों वे मनाम पुद्गल कहलाते हैं । इसके विपरीत अमनाम पुद्गल कहलाते हैं । ०७. ३ तीन भेद प्रयोगपरिणत - मिश्रपरिणत - विस्रसापरिणत पुद्गल । कद्दविहाणं भंते! पोग्गला पन्नता ? गोयमा ! तिविहा पोग्गला पन्नत्ता, तं जहा - पओगपरिणया, मोसापरिणया, वीससापरिणया । Jain Education International -- ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८६ | पृ० २१५ - भग० श८ । उ १ । प्र १ । पृ० ५३० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy