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________________ ६२ पुद्गल-कोश .०७.२.१० इष्ट पुद्गल तथा अनिष्ट पुद्गल दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, तं जहा–इट्ठा चेव अणिट्ठा चेव । -ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ पृ० १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा-इष्ट पुद्गल तथा अनिष्ट पुद्गल । टीका--xxx। इष्यन्ते स्म अर्थक्रियाथिभिरितीष्टाः।xxx। ___ अर्थ क्रिया के अभिलाषियों से इच्छित पुदगल इष्ट पुद्गल कहे जाते हैं। इसके विपरीत अनिष्ट पुद्गल जानना चाहिए। अर्थात् अनिच्छित पुद्गल को अनिष्ट पुदगल कहा जाता है। .०७ २.११ कांत पुद्गल तथा अकांत पुद्गल एवं कंता (दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, तं जहा-कता चेव अकंता चेव)। -ठाण• स्था २ । उ ३ । सू ८२ । १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा-कांत पुद्गल तथा अकांत पुद्गल । टीका.-xxx। कान्ताः कमनीया विशिष्टवर्णादियुक्ताः।xxx। सुन्दर और विशिष्ट वर्ण आदि से युक्त पुद्गल-कांत पुदगल कहलाते हैं। इसके विपरीत अकांत पुद्गल कहलाते हैं। अर्थात् विशिष्ट वर्ण आदि से रहित पुद्गल-अकांत पुद्गल कहलाते हैं। .०७ २.१२ प्रिय पुद्गल तथा अप्रिय पुद्गल एवं x x x पिया (दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, तंजहा-पिया चेव अपिया चेव)। -ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ । पृ० १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा-प्रिय पुदगल तथा अप्रिय पुद्गल । टीका-xxx। प्रियाः-प्रीतिकराः- इन्द्रियाह्लादकाः।xxx। प्रिय-प्रीतिकर--- इन्द्रियों को आह्लाद करने वाले पुद्गल को प्रिय पुद्गल कहते हैं तथा इसके विपरीत-अप्रीतिकर और इन्द्रियों को अनाह्लाद करनेवाले पुद्गलों को अप्रिय पुद्गल कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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