SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० पुद्गल - कोश द्विप्रदेश स्कंध से लेकर असंख्यातप्रदेशी स्कंधपुद्गल इतने सूक्ष्म हैं कि छद्मस्थ तथा अवधिज्ञानी इसे देख नहीं सकते हैं केवल परमावधिज्ञानी तथा केवलज्ञानी इसे जानते और देखते हैं । कतिपय अनन्तप्रदेशी पुद्गलस्कंध इतने सूक्ष्म हैं कि छद्मस्थ तथा अवधिज्ञानी इसे देख नहीं सकते । द्विप्रदेशी स्कंधपुद्गल से लेकर असंख्यातप्रदेशी स्कंधपुद्गल तलवार की धार या क्षुर की धार पर रह सकते हैं । उस तलवार की धार या क्षुर की धार पर अवस्थित इन स्कंधपुद्गलों का छेदन-भेदन नहीं होता है । ये पुद्गलस्कंध अग्निकाय के मध्य में प्रविष्ट होकर भी नहीं जलते हैं । ये पुद्गलस्कंध 'पुष्कर - सवर्तक' नामक महामेघ के मध्य में प्रविष्ट होकर भी गीलेपन को प्राप्त नहीं होते हैं । ये पुद्गलस्कंध गंगा महानदी के प्रतिस्रोत प्रवाह में प्रविष्ट होकर भी प्रतिस्खलित नहीं होते हैं । ये पुद्गलस्कंध उदगावर्त या उदकबिन्दु में प्रविष्ट होकर भी नष्ट नहीं होते हैं । इसी प्रकार कतिपय अनन्तप्रदेशी स्कंधपुद्गल भी इतने सूक्ष्म हैं कि तलवार की धार या क्षुर की धार पर स्थित होकर भी छेदन-भेदन को प्राप्त नहीं होते हैं । ये स्कंधपुद्गल अग्निकाय के मध्य में प्रविष्ट होकर भी नहीं जलते हैं । स्कंधपुद्गल 'पुष्कर - संवर्तक' नामक महामेघ के मध्य में प्रविष्ट होकर भी गीलेपन को प्राप्त नहीं होते हैं । ये पुद्गलस्कंध गंगा महानदी के प्रतिस्रोत- प्रवाह में प्रविष्ट होकर भी प्रतिस्खलित नहीं होते हैं । ये पुद्गलस्कंध उदगावर्त या उदर्काबिन्दु में प्रविष्ट होकर भी नष्ट नहीं होते हैं । कतिपय अनन्तप्रदेशी स्कंधपुद्गल तलवार की धार या क्षुर की धार पर स्थित होकर छेदन-भेदन को प्राप्त होते हैं । ये स्कंधपुदपल अग्निकाय के मध्य में प्रविष्ट होकर जल जाते हैं । ये स्कंधपुद्गल 'पुष्कर - संवर्तक' नामक महामेघ के मध्य में प्रविष्ट होकर गीलेपन को प्राप्त होते हैं । ये पुद्गलस्कंध गंगा महानदी के प्रतिस्रोत में प्रविष्ट होकर प्रतिस्खलित होते हैं । ये पुद्गलस्कंध उदगावर्त या उदकबिन्दु में प्रविष्ट होकर नष्ट होते हैं । द्विप्रदेशी स्कंधपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कंधपुद्गल - सबकी गति अनुश्रेणी होती है किन्तु बिश्रेणी गति नहीं होती है । द्विप्रदेशी स्कंधपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कंधपुद्गल - सबका सादि पारिणामिक भाव है, अनादि पारिणामिक भाव नहीं है । . द्विप्रदेशी स्कंध पुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कंधपुद्गल की स्थिति जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट असंख्यात काल की है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy