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________________ २६ पुद्गल-कोश टीका-किमिहापुद्गलमात्रविलये'-समस्तकर्मपुद्गलपरिशाटसमये जीवस्यात्मनः स्वतत्त्वेबृत्तिमादधत एकान्तेन कृतं विहितं येन कृतको मोक्षः स्यात्? एतदुक्तं भवति–इहात्मकर्मपुद्गलवियोगो मोक्षोऽभिप्रतः।xxx। आत्मा से पुदगल मात्र का- समस्त कर्मपुद्गलों का विलय-वियोगपरिशाटन को पुद्गलमात्रविलय कहते हैं और इससे मोक्ष का अभिप्रेत है । :०४.७३ पोग्गलमेत्तविसयओ ( पुद्गलमात्रविषय ) -विशेभा० गा २१३६ जुत्तमिह केवलं चेव पच्चओ नोहि-माणसं नाणं । पोग्गलमेत्तविसयओ सामाइयारूवया ज च ॥ यहाँ अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान का विषय पुद्गलमात्रविषय-रूपी द्रव्यविषय कहा गया है। •०४.७४ पोग्गलमोक्खो (पुद्गलमोक्ष ) -षट्० खं० ५। ५ । सू ८२ टीका । पु १३ । पृ० ३४८ बंध का विपरीत-मोक्ष । बंध से मुक्ति मोक्ष है । दो, तीन आदि ( परमाणु ) पुद्गलों का जो समवाय सम्बन्ध होता है वह पुद्गलबंध, अथवा स्निग्ध तथा रूक्ष गुणों के कारण पुद्गलों का जो परस्पर में बंध होता है वह पुद्गलबंध तथा जब इस प्रकार बंध को प्राप्त पुद्गलों का बन्ध टूटता है और विभिन्न पुद्गल पारस्परिक बन्ध से मुक्त होते हैं वह पुद्गलमोक्ष । .०४.७५ पोग्गलाणमागमणं (पुद्गलानामागमनं ) -षट्० खं० ५। ५ । सू ८२ टीका । पु १३ । पृ० ३४७ तहा पोग्गलाणमागमणं गमणं चयणमुववादं च जाणदि। पोग्गलेसु अप्पिदपज्जाएण विणासो चयणं । अण्णपज्जाएणं परिणामो उववादो णाम। यहाँ पुद्गल के आगमन, गमन, अर्थात् आगति, गति, चयन और उपपाद का वर्णन है। टीकाकार ने पुद्गल को गति-आगति पर टीका नहीं की है, लेकिन चयन और उपपात पर टीका की है। यथा-पुद्गलों में विवक्षित पर्याय का नाश होनाचयन है तथा अन्य पर्याय रूप से परिणमन होना उपपाद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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