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________________ पुद्गल-कोश •०४ ३९ थोवकम्मपोग्गलग्गहणटु ( स्तोककर्मपुद्गलग्रहणार्थ ) -कसापा० गा २२ । टीका १३१ । भाग ६ । पृ० १२६ मिथ्यात्व के जघन्य प्रदेश सत्कर्म वाला कौन होता है इस प्रश्न के उत्तर में सूक्ष्म निगोदियों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पर्याप्त के योगों से अपर्याप्त के योग असंख्यात गुणहीन होते हैं। अतः उनके द्वारा थोड़े कर्म पुद्गलों का ग्रहण करने के लिये अद्धावास का कथन किया गया है । .०४.४० दविंदियपोग्गलं ( द्रव्येन्द्रियपुद्गल ) -गोक० गा ७९ । उत्तरार्द्धम् द्रव्येन्द्रिय के पुदगलजाईए णोकम्म दविंदियपोग्गलं होदि । जातिकर्म का नोकर्म द्रव्येन्द्रियस्वरूप पुद्गल की रचना होती है। जातिकमनामकर्म की एक प्रकृति । ०४.४१ दिट्ठासेसपोग्गलदधस्स ( दृष्टाशेषपुद्गलद्रव्य) –कसाषा० गा १ । टीका ६४ । भाग १ । पृ० ८३ सर्वावधिज्ञान का परिणाम-दृष्टाशेषपुद्गलद्रव्य । xxx तेणं महावीरभंडारएणं इंदभूदिस्सx x x सव्वोहिणाणणं दिदासेसपोग्गलदव्वस्सxxx। महावीर स्वामी के प्रथम गणधर-इन्द्रभूति ने सर्वावधि ज्ञान द्वारा अशेषसमस्त पुद्गल द्रव्य का साक्षात्कार किया। .०४.४२ नाणाविहसरीरपुग्गलविउविता (नानाविधशरीरपुद्गलविकुर्वणा) - सूय० श्रु २ । अ ३ । सू २ । पृ० १६० नानाविधशरीरपुद्गलविकुर्वणा अर्थात् नाना प्रकार के शारीरिक पुद्गल की रचना। xxx । अयरे वि य णं तेसि (बीयकाया) पुढवि-जोणियाणं रूक्खाणं सरीरा नाणावण्णा नाणागंधा नाणारसा नाणाफासा नाणासंठाणसंठिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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