SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 96 ) चार भाषाओं में असत्य और सत्यमृषा भाषा सर्वथा वर्जनीय है तथा सत्य और असत्यामृषा, जो बुद्धों के द्वारा अनाचीर्ण है वह वर्जनीय है । सावद्य सक्रिय, कर्कश, कटुक, निष्ठुर, परुष, आस्नवकरी, छेदनकरी, भेदनकरी, परितापनकरी और भूतोपघातिनी सत्य भाषा भी साद्य है । कर्कश आदि विशेषणयुक्त सत्य भाषा भी सावद्य है । अस्तु निरवद्य सत्य भाषा व व्यवहार भाषा का प्रयोग करे । कहा है - तत्र ये असंसारसमापन्नस्सिद्धा, सिद्धाश्च देहमनोवृत्त्यभावतोऽक्रिया । × × × तत्र ये शैलेशीप्रतिपन्न कास्ते सूक्ष्मबादरकायवाङ्मनोयोग निरोधादक्रिया । - पण० पद २२ । सु १५७३ | टीका योग के निरोध होने पर जीव अक्रिय होता है । असंसार समापनक सिद्ध जीव देह, मन आदि वृत्ति के अभाव में अक्रिय होते हैं । शैलेशीत्व को प्राप्त संसारसमापनक जीव सूक्ष्म बादर काय - वचन मन योग का निरोध होने से अक्रिय होते हैं । नोट - अयोगी गुणस्थान — चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त जीव शैलेशी हो जाते हैं । अभयदेव सूरि ने अंतक्रिया को 'योगनिरोधाभिधान शुक्लध्यानेन' 'सकल कर्मक्षयरूपा ' कहा है । - भग० श ३ । उ ३ । सु ११ । टीका अस्तु श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के पुस्तकाध्यक्षों तथा जैन भवन के पुस्तकाध्यक्षों के हम बड़े आभारी हैं जिन्होंने हमारे सम्पादन के कार्य में प्रयुक्त अधिकांश पुस्तकें हमें देकर पूर्ण सहयोग दिया । गणाधिपति गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी तथा आचार्य श्री महाप्रज्ञ की महान् दृष्टि हमारे पर रही है जिसे हम भूल नहीं सकते । गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी ने प्रस्तुत कोश पर आशीर्वाद लिखा- हम उनके प्रति कृतज्ञ है । कलकत्ता युनिवर्सिटी के भाषा विज्ञान के प्राध्यापक डा० सत्यरंजन बनर्जी को हम सदैव याद रखेंगे जिन्होंने हमारे अनुरोध पर योग कोश पर भूमिका लिखी । हम जैन दर्शन समिति के सभापति श्री गुलाबमल भण्डारी, मंत्री श्री पद्मकुमार रायजादा, स्व० जबरमलजी भण्डारी, स्व० मोहनलालजी बांठिया, श्री अभयसिंह सुराना, श्री हीरालाल सुराना, श्री नवरतनमल सुराना, श्री मांगीलाल लूणिया, श्री इन्द्रमल भण्डारी, श्री मोहनलालजी बैद, श्री केवलचंद नाहटा आदि सभी बन्धुओं को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने हमारे विषय कोश निर्माण की कल्पना में हमें किसी न किसी रूप में सहयोग दिया । पात्र हैं जिन्होंने इस पुस्तक का मेहता प्रेस तथा उनके कर्मचारी भी धन्यवाद सुन्दर मुद्रण किया है । Jain Education International श्रीचन्द चोरड़िया, न्याय तीर्थ (द्वय ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy