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________________ ( 78 ) अस्तु केवल योग के निमित्त से आये हुए पुदगल स्कन्धों में काल निमित्तक अल्पत्व देखा जाता है अतः ईर्या-पथ कर्म अल्प है। भगवती सूत्र में यथाख्यात चारित्र में शुक्ल लेश्या मिलती है तथा स्नातक निर्ग्रन्थ में परम शुक्ल लेश्या का उल्लेख मिलता है। अस्तु स्नातक में जो एक परम शुक्ल लेश्या का कथन किया है। इसका आशय यह है कि शुक्ल लेश्या के तीसरे भेद के समय ही एक परम शुक्ल लेश्या होती है, दूसरे समय में तो उनमें शुक्ल लेश्या ही होती है किन्तु वह शुक्ल लेश्या भी दूसरे जीवों की शुक्ल लेश्या की अपेक्षा परम शुक्ल लेश्या होती है। पुलाक निग्रन्थ के विषय में व्याख्याकारों का यह मत है कि पुलाक निग्रन्थ उस समय पुलाक लब्धि को सक्रिय करते हैं, जबकि कोई प्रचण्ड धर्मद्वेषी जिन धर्म और संघ पर क्रूर बनकर भयंकर क्षति पहुँचाने को तत्पर हो और किसी प्रकार समझना एवं शान्त नहीं होना चाहता हो, तब उस उपद्रव से संघ की रक्षा के लिए वे इस शक्ति का उपयोग करके उस क्रूर की शान्ति नष्ट करते हैं। पुलाक लब्धि में इतनी शक्ति होती है कि वह शक्तिशाली महात्मा अपनी क्रूद्ध दृष्टि से लाखों मनुष्यों की सेना का भी निरोध कर सकते हैं। उनकी शक्ति के आगे शस्त्रबल व्यर्थ हो जाता है। कहा है उवसम सुहृमाहारे वैगुम्वियमिस्सणर अपज्जत्ते। सासणसम्मे मिस्से सांतरगा मग्गणाअट्ठ । सत्तदिणा च्छम्मासा वासपुधत्तं च वारसमुहुत्ता। पल्लासंखं तिण्हं वरमवरं एगसमो दु॥ - गोजी• गा• १४३, १४४ टीका-काल अन्तरंनामxxx आहारकतन्मिश्रकाययोगिनांवर्षपृथक्त्वं xxx वैक्रियिकमिश्रकाययोगिनां द्वादशमुहूर्ताः x x x। तासां जघन्येनान्तरं एक समय एवं ज्ञातव्य । आहारक और आहारकमिश्र काययोगवालों का उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व है। वैक्रियमिश्र काययोगियों का अन्तर बारह मुहूर्त है। जघन्य अन्तर एक समय का होता है। अजीव द्रव्य, नैरयिकों के परिभोग में आते हैं परन्तु, नैरयिक, अजीव द्रव्यों के परिभोग में नहीं आते हैं। चूंकि नैरयिक, अजीव द्रव्यों को ग्रहण करते हैं, ग्रहण करके उन्हें वैक्रिय, तेजस और कार्मण शरीर, श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शन्द्रिय, तीन योग और श्वासोच्छ वास रूप में परिणमन करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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