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________________ ( 76 ) सावद्य योग अर्थात् पापकारी प्रवृत्तियां, अठारह पाप सावद्य योग है । निरवद्य योग अर्थात् पाप रहित आध्यात्मिक प्रवृत्तिया । द्रव्य लेश्या नाम कर्म का उदय है । भाव लेश्या मोहकर्म और नामकर्म का भी उदय है । सिद्ध अकर्त्ता है । वहाँ योग-जन्य क्रिया है ही नहीं । उपयोग जन्य क्रिया वहाँ सहज ही होती रहती है । सिद्ध सकंप भी होते हैं, निष्कंप भी अनंतर सिद्ध सकंप है क्योंकि उनके एक समय की ऋजुगति है इसके विपरीत परंपर सिद्ध निष्कंप है। चौदहवें गुणस्थान के जीव निष्कंप है— सकंप नहीं I क्योंकि उनके योग का अभाव एवं एजनादि क्रिया नहीं है । कार्मण | १ - एक योग किसमें – दिखाई देते हुए अनाज के दाने में । २ - - दो योग किसमें उड़ती हुई मक्षिका में- औदारिक व व्यवहार भाषा । ३ – तीन योग किसमें – तेजस्काय में – औदारिक, औदारिकमिश्र व कार्मण । ४ - चार योग किसमें ? द्वीन्द्रिय में औदारिक, औदारिकमिश्र, व्यवहार भाषा व ५ - पांच योग किसमें ? वायुकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियमिश्र व कामंण । ६ - छह योग किसमें ? असंज्ञी में – औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र, व्यवहार भाषा व कार्मण । ७ - सात योग किसमें ? केवल ज्ञानी में - सत्यमन, व्यवहारमन, सत्यभाषा, व्यवहार भाषा, औदारिक, औदारिकमिश्र व कार्मण । --- ८ - आठ योग किसमें ? तीसरे गुणस्थान की नियमा में चार मन और चार वचन के योग । वैक्रिय, - ९ - नौ योग किसमें ? परिहार विशुद्धि चारित्र में चार मन के, चार वचन के, एक ओदारिक । - १० - दस योग किसमें ? तीसरे गुणस्थान में चार मन के, चार वचन के, औदारिक व वैक्रिय । ११ - ग्यारह योग किसमें ? नारकी में - चार मन के, चार वचन के, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र व कार्मण । १२ - बारह योग किसमें ? छोड़कर | Jain Education International श्रावक में - आहारक, आहारकमिश्र व कामंण को For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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