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________________ ( 45 ) प्रज्ञापना पद ११ के भाषा पद में सत्य भाषा के जनपद भाषा आदि १० भेदों का उल्लेख मिलता है। सबसे कम तीन योग युक्त जीव हैं, उससे दो योग ( वचन-काययोगी) युक्त जीव संख्यातगुणे हैं, उससे अयोगी अनंतगुणे अधिक हैं और उससे एक योगी ( काययोगी) वाले जीव अनन्तगुणे हैं। चारों मनोयोग का काल अन्तमुहूर्त मात्र ही है अर्थात चारों मनोयोग के काल के जोड़ से संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त सत्य-वचन योग का काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त असत्य वचन योग का काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त उभय वचन योग का काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तमुहूर्त अनुभय वचन योग का काल है। इन सबका योग भी अन्तर्मुहूर्त मात्र है। नोट-संदृष्टि के रूप में मनोयोग से काल से (८५) संख्यातगुणा ८५ x ४ सत्य वचन योग का काल है। उससे संख्यातगुणा ८५४ १६ असत्य वचन योग का काल है। उससे संख्यातगुणा ८५x ६४ उभय वचन तथा उससे संख्यातगुणा ८५४ २५६ अनुभय वचन योग का काल है। इनका जोड़ ८५४३४० होता है। इन चारों वचन योगों के काल का जोड़ ८५४ ३४० सामान्य वचन योग का काल है। __ सम्यगमिथ्यादृष्टि में दस योग होते हैं। परन्तु मारणांतिक समुद्घात नहीं होता है और न आयुष्य को बांधता है, न मरता है। प्रमाद के पन्द्रह भेद होते हैं-चार विकथा, चार कषाय, पांच इन्द्रिय, निद्रा व स्नेह। कहा जाता है कि अप्रमत्त संयत गुणस्थान में शुभ योग होते हैं परन्तु दिगम्बर परम्परा में अशुभ योग भी माना है। उस गुणस्थान में संज्वलन कोध-मान-माया-लोभ चार कषायों का और हास्य आदि नौ नोकषायों का यथासंभव उदय है। चक्रवर्ती तथा वासुदेव में बारह योग होते हैं–४ मनोयोग, ४ वचनयोग, औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, वैक्रिय काययोग तथा वैक्रियमिश्र काययोग। दर्शन मोहनीय का बंध की विवक्षा से एक भेद है। किन्तु उदय और सत्त्व की अपेक्षा मिथ्यात्व, सम्यगमिथ्यात्व, सम्यवत्व प्रकृति तीन भेद हैं। जो मूल में उष्ण है । वह अग्नि है और जिसकी प्रभा उष्ण हो वह आतप है। आतप नामकर्म का उदय सूर्य के बिम्ब में उत्पन्न बादर पर्याप्त पृथ्वीकायिक तिर्यच जीव में होता है। जिसकी प्रभा भी उष्ण न हो वह उद्योत है। हास्यादि षट् नोकषाय का अनिवृत्ति बादर गुणस्थान में क्षय या उपशम होता है। औदारिकमिश्र काययोगी, वैक्रियमिश्र काययोगी, आहारकमिश्र काययोगी व कार्मण काययोगी जीव आयुष्य का बंधन नहीं करता है। जैसे-विशेष पात्र में डाले गये विविध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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