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________________ ( ३४१ ) नोट-पर्याप्तकत्व के प्रथम समयवर्ती को अनंतर पर्याप्तक कहते हैं। सयोगी अनंतरपर्याप्त जीव दंडक के संबंध में वैसा ही कहना जैसा अनंतरोपपन्नक विशेषण वाले जीव दंडक के सम्बन्ध में पाप कर्म तथा अष्ट कर्म बंधन के विषय में कहा है। ‘३६ सयोगी परम्पर पर्याप्तक नारकी आदि और पापकर्म का बंध सयोगी , ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय फर्म-बंध परंपरपज्जत्तए णं भंते ! गरइए पाव कम्मं कि बंधी-पुच्छा । गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववण्णएहि उद्देसो तहेव गिरवसेसो भाणियव्वो। -भग० श. २६ । उ ९ सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी परम्पर पर्याप्तक नारकी आदि का विवेचन परंपरोपपन्नक नारकी आदि की तरह जानना चाहिए । सयोगी परंपरोपपन्नक जीव दंडक के संबंध में वैसा ही कहना जैसा परंपरोपपन्नक विशेषणवाले सयोगी जीव दंडक के सम्बन्ध में पाप कर्म तथा अष्ट कर्म बंधन के विषय में कहा है। ३७. सयोगी चरम नारको आदि तथा पापकर्म का बंध सयोगी चरम नारको आदि तथा ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय कर्म का बंध चरिमे णं भंते ! जेरइए पावं कम्मं कि बंधी-पुच्छा । गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववण्णएहि उद्देसो तहेव चरमेहि णिरवसेसो। -भग० श. २६ । उ १० सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी नारकी आदि का विवेचन सयोगी-मनोयोगी वचनयोगी काययोगी परंपरोपपन्नक नारकी आदि की तरह जानना चाहिए । सयोगी चरम दंडक के सम्बन्ध में वैसा ही कहना, जैसा परंपरोपपन्नक विशेषणवाले सयोगी जीव दंडक के सम्बन्ध में पाप कर्म तथा अष्ट कर्म बंधन के विपय में कहा है । टीकाकार के अनुसार सयोगी चरम मनुष्य के आयुकर्म का बंधन की अपेक्षा से केवल चतुर्थ भंग ही घट सकता है, क्योंकि जो सयोगी चरम मनुष्य हैं उसके पूर्व में आयु बांधा है लेकिन वर्तमान में नहीं बांधता है तथा भविष्यत् काल में नहीं बांधेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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