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________________ ( ३३३ ) ? सयोगी - मनोयोगी - वचनयोगी - काययोगी जीव में वेदनीयकर्म बांधा था दूसरा भंग होता है । अयोगी में एक चौथा भंग होता है । सयोगी नारकी जीव यादत् वैमानिकदेव के वेदनीय कर्म-बंधन रइए णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं बंधी बंधइ ? एवं रइय जाव वैमाणिया सि । जस्स जं अत्थि सव्वत्थ वि पढम बिइयावरं मस्से जहा जीवे । - भग० श० २६ । उ १ । सू १८ नैरयिक जीव ने वेदनीयकमं बांधा ? पहला और दूसरा भंग होता हैं । इसी प्रकार असुरकुमार से वैमानिक तक ( मनुष्य बाद देकर ) पहला- दूसरा भंग होता है । मनुष्य में सामान्य जीव की तरह तीन भंग होते हैं ( तृतीय भंग को बाद देकर ) अयोगी में चतुर्थ भंग होता है । अस्तु सयोगी नारकी यावत् वैमानिक देव तथा मनुष्य भी कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से वेदनीयकर्म का बंधन करता है । जिसके जितने योग हो उतने पद करने । अस्तु सयोगी मनुष्य जीव पद की तरह द्वितीय व प्रथम विकल्प से वेदनीयकर्म का बंधन करता है । नोट- वेदनीयकर्म के बंधक में पहला भंग अभव्य जीव की अपेक्षा से है । जो भव्य जीव मोक्ष जाने वाला है उनकी अपेक्षा दूसरा भंग है । चौथा भंग अयोगी केवली की अपेक्षा से है । • १५ सयोगी जीव और मोहनीय कर्म का बंध जीवेणं भंते! मोहणिज्जं कम्मं कि बंधी बंधइ० ? जहेव पावकम्मं तहेव मोहणिज्जं पि णिरवसेसं जाव बेमाणिए । पापकर्म के समान मोहनीयकर्म भी है । तक कहना चाहिए | पहला और - १६ सयोगी जीव और आयुष्य कर्म का बंध जीवे णं भंते! आउयं कम्म कि बंधी-वंधइ- पुच्छा ? सलेस्से जाव सुक्कलेस्से चत्तारि भंगा। अत्थेगइए बंधी - चउभं गो । चरिमो भंगो । Jain Education International - भग० श० २६ । उ १ । सू १९ इस प्रकार नारकी से यावत् वैमानिक For Private & Personal Use Only गोयमा ! अलेस्से www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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