SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३३१ ) एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा x x x सेसं जं चेव, सम्वत्थ पढम-बिइया भंगा। एवं थणियकुमारस्स। -भग० श० २६ । उ १ । सू १४ सयोगी, मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी नारकी में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है, यथा १-पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा। (यह प्रथम भंग अभव्य जीव की अपेक्षा है)। २-पापकर्म बांधा था, बाँधता है और नहीं बाँधेगा। (यह दूसरा भंग क्षपक अवस्था को प्राप्त होनेवाले भव्य जीव की अपेक्षा है)। इसी प्रकार सयोगी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार तक प्रथम और द्वितीय दो भंग मिलते हैं। •४ सयोगी पृथ्वीकायिक, सयोगी अप्कायिक, सयोगी अग्नि कायिक और कर्म-बंधन .५ सयोगो वायुकायिक, सयोगी वनस्पतिकायिक , .६ सयोगी द्वीन्द्रिय वीन्द्रिय व सयोगी चतुरिन्द्रिय , •७ सयोगी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय योनिक और कर्म बंधन __ एवं पुढविक्काइयस्स वि, आउकाइयस्स वि जाव पंचिदियतिरिक्खजोणियस्स वि सव्वत्थ वि पढम-बिइया भंगा, णवरं जस्स जा लेस्सा।xxx जोगो य अस्थि तं तस्स भाणियव्वं, सेसं तहेव । -भग० श. २६ । उ १ । सू १५ सयोगी पृथ्वीकायिक, सयोगी अप्कायिक यावत् सयोगी पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक तक सभी के इसी प्रकार पहला-दूसरा भंग है। जिस जीव में जो योग हो वही योग कहना चाहिए। '८ सयोगी मनुष्य और कर्म-बंधन ९ सयोगी वाणव्यंतरदेव और कर्म-बंधन १० सयोगी ज्योतिषीदेव और कर्म-बंधन .११ सयोगी वैमानिक देव और कर्म-बंधन मणूस्सस्स जच्चेव जीवपए वत्तन्वया सच्चेव गिरवसेसा भाणियन्वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy