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- ५७ २ सयोगी जीव और ज्ञानावरणीय कर्म आदि अष्ट कर्म का समर्जन समाचरण xxx एवं णाणावरणिज्जेण वि दंडओ | एवं जाव अंतराइएणं । एवं एए जीवादीया वैमाणियपज्जवसाणा णव दंडगा भवंति ।
- भग० श० २८ । उ १ । सू ३
इसी प्रकार सयोगी नारकी में ज्ञानावरणीय कर्म के समर्जन समाचरण की अपेक्षा आठ भंग कहना |
सयोगी-मनोयोगी - वचनयोगी- काययोगी-अयोगी जीवों ने ज्ञानावरशीय कर्म यावत् अंतराप कर्म - अष्ट कर्मों का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था । इसी प्रकार नारकी यावत् वैमानिक जीवों ने पाप कर्म तथा अष्ट कर्मों का समर्जन- समाचरण आठ विकल्पों में किया था । पाप कर्म तथा अष्ट कर्म के अलग-अलग नौ दंडक कहने । • ५७.३ सयोगी अनंतरोपपन्नक नारकी और पापकर्म का समर्जन- समाचरण अनंतवणगाणं भंते । णेरड्या पावं कम्म कहिं समजिणसु कहि समायरंसु ?
गोयमा ! सव्वे वि ताव तिरिवखजोणिएसु होज्जा । एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा । एवं अनंतरोववण्णगाणं णेरइयाईणं जस्सं जं अस्थि लेस्साईयं अणागारोवओगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं । वरं अणंतरेसु जे परिहरियव्या ते जहा बंधिसए तहा इहंपि ।
- भग० श० २८ ।उ २ । सू १
सयोगी-काययोगी अनंतरोपपन्नक नारकी सभी तिर्यचयोनिक थे मनोयोग-वचनयोग नहीं होता है ।
आठ भंग यहाँ भी कहना चाहिए । अनंतरोपपन्नक वैमानिक देवों तक जानना ।
• ३ सयोगी अनंतरोपपन्नक नारकी और ज्ञानावरणीय कर्म का बंध सयोगी अनंतरोपपन्नक नारकी और दर्शनावरणीय से अंतराय कर्म का बंध
इत्यादि पूर्वोक्त यावत् सयोगी
एवं णाणावर णिज्जेण वि दंडओ, एवं जाव अंतराइएणं णिरवसेसं । एसो वि णवदं डगसंगहिओ उद्देसओ माणियत्वो ।
- भग० श० २८ । उ२ । सू १
सयोगी और काययोगी अनंतरोपपन्नक नारकी ज्ञानावरणीय कर्म का आठ स्थानों से पापकर्मों का समाचरण किया था ।
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