SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३२१ ) .५६ १ सयोगी जीव और पापकर्म आदि का करना सलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्मं एएणं अभिलावेणं जच्चेव बंधिसए वत्तव्वया सच्चेव गिरवसेसा भाणियब्वा, तहेव णवदंडगसंगहिया एक्कारस उद्देसगा भाणियवा। -भग० श० २७ । उ १ से ११ पाप-कर्म बंधन की तरह सयोगी जीवों में चार भंग कहना। मनोयोगी-वचनयोगी और काययोगी जीवों में चार भंग पाये जाते हैं। अयोगी जीवों में अन्तिम एक भंग पाया जाता है। सयोगी जीव ने पाप-कर्म तथा अष्ट कर्म किया है इत्यादि उसी प्रकार कहने जैसे कर्म बंध (६३) नव दंडक सहित ग्यारह उद्देशक कहे हैं। नोट-चार भंग १-किसी जीव ने पाप-कर्म किया था, करता है और करेगा। २.-किसी जीव ने पाप-कर्म किया था, करता है और नहीं करेगा। ३-किसी जीव ने पापकर्म किया था, नहीं करता है और करेगा। ४ – किसी जीव ने पापकर्म किया था, नहीं करता है और नहीं करेगा। छन्वीसवें शतक में बंध का, सताइसवें शतक में 'करण' का कथन किया। यद्यपि बंध और करण में कोई अन्तर नहीं है। तथापि यहाँ जो पृथक् कथन किया है इसका कारण यह बताया है कि जीव की जो कर्मबंध क्रिया है वह जीव कृत ही है। अथवा बंध का अर्थ है -सामान्य रूप में कर्म को बांधना और करण का अर्थ हैकर्मों को निधत्तादि रूप में बांधना, जिससे विपाकादि रूप से उसका फल अवश्य भोगना पड़े। .५७ सयोगी जीव और पाप कर्मों का समर्जन-समाचरण सयोगी जीव और ज्ञानावरणीय आदि अंतराय कर्म का समर्जन-समाचरण १ सलेस्सा णं भंते ! जीवा पावं कम्म कहिं समजिणिसु कहिं समायरिंसु । ___ एवं चेव ( गोयमा ! १-सव्वेवि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा। २–अहवा तिरिक्खजोणिएसु य गैरइएसु य होज्जा। ३- अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मणुस्सेसु य होज्जा। ४-अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होज्जा । ५–अहवा तिरिक्खजोगिएसु य रइएसु य मणुस्सेसु य होज्जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy