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________________ ( ३०८ ) प्रथम समय के कृष्णलेश्यावाले कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय जीव मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं, काययोगी होते हैं। औधिकशतक के ग्यारह उद्देशक के समान कृष्णले श्यावाले शतक के भी ग्यारह उद्देशक कहने । सब एकेन्द्रिय जीव काययोगी होते हैं। एवं नीललेस्सेहि वि सयं कण्हलेस्ससयसरिसं। एक्कारस उद्देसगा तहेव। एवं काउलेस्सेहि वि सयं कण्हलेस्ससयसरिसं। -भग० श० ३५ । श० ३ । ४ नीललेशी एकेन्द्रिय महायुग्मशतक के कृष्णलेशी एकेन्द्रिय महायुग्मशतक के समान ग्यारह उद्देशक कहने, सिर्फ काययोगी होते हैं । कापोतलेशी एकेन्द्रिय महायुग्मशतक के कृष्णलेशी एकेन्द्रिय महायुग्म के समान ग्यारह उद्देशक कहने, वे सब काययोगी होते हैं । ( भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया ) जहा ओहियसयं तहेव। णवरं एक्कारससु वि उद्देसएसु ।xxx। सेसं तहेव । -भग० श. ३५ । शतक ५ भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय जीव औधिकशतक के अनुसार कहना । इनके ग्यारह उद्देशकों में काययोगी कहना, मनोयोगी व वचनयोगी नहीं कहना । कण्हलेस्सभवसिद्धिय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिदिया) एवं कण्हलेस्स भवसिद्धियएगिदियएहि वि सयं बिइयसयकण्हलेस्ससरिसं भाणियध्वं । एवं णीललेस्सभवसिद्धियएगिदियएहि वि सयं । एवं काउलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि तहेव एकारस-उद्देसगसंजुत्तं xxx। -भग. श० ३५। श० ६ । ७ । ८ कृष्णलेशी भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय के विषय में कृष्णलेश्या के दूसरे शतक के समान यह शतक भी कहना चाहिए। सोलह महायुग्म सहित इग्यारह उद्देशक के जीव काययोगी होते हैं। इसी प्रकार नीललेश्या वाले भबसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक कहना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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