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________________ ( २८७ ) हे गौतम ! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येय विस्तृत नरकावासों में एक समय में मनोयोगी और वचनयोगी जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। जघन्य एक अथवा दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात काययोगी जीव उत्पन्न होते हैं । नोट-आगम में रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होने वाले जीवों के विषय में लेश्यादि ३९ प्रश्न किये गये हैं। हमने योग को ही ग्रहण किया है। उत्पत्ति के समय अपर्याप्त होने में मन और वचन, इन दोनों योगों का अभाव है। इसलिये ऐसा कहा गया है कि मनोयोगी और वचन उत्पन्न नहीं होते हैं। च कि सभी सयोगी जीवों के काययोग सदैव रहता है। इसलिए ऐसा कहा गया है कि-काययोगी उत्पन्न होते हैं । गमक १–इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु असंखेज्जवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उववज्जति जाव केवतिया अणागारोघउत्ता उववज्जति ? ( केवतिया मणजोगी उववज्जति ? केवतिया वइजोगी उववज्जति, केवतिया कायजोगी उववज्जति )। गोयमा! इसीसे रयणप्पयाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु असंखेज्जवित्थडेसु नरएसु एगसमएण जहण एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं असंखेज्जा नेरइया उववज्जति ? एवं जहेव संखेज्जवित्थडेसू तिष्णिगभगा तहा असंखेज्जवित्थडेसु वि तिण्णि गमगा भाणियव्या, नवरं असंखेज्जा भाणियन्वा, सेसं तं चेव जाव असंखेज्जा अचरिमा पण्णत्ता, नवरं-संखेज्जवित्थडेसु असखेज्जवित्थडेसु वि ओहिनाणी, ओहिदसणी य संखेज्जा उव्वट्टावेयव्वा, सेसं तं चेव । -भग० श० १३ । उ १ सू ७ गमक १ इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से असंख्यात योजन विस्तारवाले नरकावासों में एक समय में कितने मनोयोगी जीव, कितने वचनयोगी जीव व कितने काययोगी जीव उत्पन्न होते हैं। हे गौतम ! जिस प्रकार संख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों के विषय में ( उत्पाद, उदवर्तन और सत्ता ) ये तीन आलाप कहे गये हैं उसी प्रकार असंख्यात योजन वाले नरकावासों के विषय में भी तीन आलापक कहने चाहिए। इनमें विशेषता यह है कि यहां संख्यात के स्थान पर असंख्यात पाठ कहना चाहिए। शेष सब पहले के समान कहना चाहिए। नोट -असंख्यात योजन विस्तृत नरकावासों में एक समय में मनोयोगी और वचन योगी जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। जघन्य एक या दो या तीन अथवा उत्कृष्ट असंख्यात काययोगी उत्पन्न होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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