SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५५ ) सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोगी केवली गुणस्थान तक काययोगी और औदारिक काययोगी जीव मनोयोगियों के समान है। यह सुत्र सुगम है। अब यहाँ पर ध्र वराशि की विधि का कथन करते हैं। वह इस प्रकार है-गुणस्थान-प्रतिपन्न मनोयोगराशि, वचनयोगराशि, सिद्धराशि और अयोगराशि को तथा इन चारों राशियों के वर्ग में काययोगराशि का भाग देने पर जो उपलब्ध हो उसे सर्व राशि में मिला देने पर काययोगियों की ध्र व-राशि होती है । अनन्तर इसकी प्रतिराशि करके उनमें से एक राशि में संख्यात का भाग देने पर जो उपलब्ध हो उसे उसी ध्र वराशि में मिला देने पर औदारिककाययोगियों की धू वराशि होती है । सासादान आदि गुणस्थानों के अपने-अपने अवहारकाल को संख्यात से खंडित करके जो लब्ध हो उसे उसी सामान्य अवहारकाल में मिला देने पर काययोगी सासादानसम्यगदृष्टि आदि गुणस्थान प्रतिपन्न जीवों के अवहारकाल होते हैं। इन अवहारकालों को आवली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर औदारिक काययोगी सासादान सम्यग्दृष्टि आदि जीवों के अवहारकाल होते हैं, क्योंकि गुणस्थान प्रतिपन्न तिर्यंच और मनुष्य राशियां गुणस्थान प्रतिपन्न देवराशि के असंख्यातवें भागमात्र है। औदारिक काययोग की अपेक्षा सयतासंयतों का अवहारकाल ही औदारिक-काययोगियों का अवहार काल है, क्योंकि संयतासंयत गुणस्थान में औदारिक काययोग को छोड़ कर और दुसरा कोई काययोग नहीं पाया जाता है। .०४ औदारिकमिश्रकाययोगी का द्रव्य प्रमाण ओरालियमिस्सकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी मूलोघं । -षट् खण्ड ० १ । २ । सू ११२ । पु ३ । पृष्ठ० ३९६ टीका-एदं पि सुत्तं सुगमं । एत्थ धुवरासी उच्चदे। ओरालिकायजोगिधुवरासि पुव्वं परूविदं संखेज्जरवेहि गुणिदे ओरालियमिस्सकायजोगधुवरासी होदि । कुदो? सुहमेईदियअपज्जत्तरासीए पज्जत्तरासिस्स संखेज्जदिभागत्तादो ? तं जहा-तिरिक्ख-मणुस-अपज्जत्तद्धादो पज्जत्तद्धा संखेज्जगुणा। ताणमद्धाणं समासेण तिरिक्खरासि खंडिय लद्धमपज्जत्तद्धाए गुणिदे ओरालियमिस्सरासी होदि। तमद्धाए गुणगारेण गुणिदे ओरालियकायजोगरासी हवदि। तेण ओरालियकायजोगरासीदो ओरालियमिस्सकायजोगरासी संखेज्जगुणहीणो। सासणसम्माइट्ठी ओघं। ----षट् सू ।। २ । सू ११३ । पु ३ । पृष्ठ० ३९७ टीका-सासणसम्माइट्ठिणो देव-गैरइया जेण तिरिक्ख-मणुस्सेसु उववज्जमाणा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता लब्भंति तेण एदेसि पमाणपरूवणाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy