SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४९ ) वचनयोगियों और असत्यमृषा अर्थात् अनुभय वचनयोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा असंख्यात है । 'असंख्यात है' इस प्रकार सामान्य वचन देने से नौ प्रकार के असंख्यातों का ग्रहण प्राप्त होता है । काल की अपेक्षा वचनयोगी और अनुभय वचनयोगी जीव असंख्याता संख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के द्वारा अपहृत होते हैं । क्षेत्र की अपेक्षा वचनयोगियों और अनुभय वचनयोगियों में मिथ्यादृष्टि जीवों के द्वारा अंगुल के संख्यातवें भाग के वर्ग रूप प्रतिभाग से जगप्रतर अपहृत होता है । द्वीन्द्रिय से लेकर ऊपर के जीव समासों में भाषापर्याप्ति से प्राप्त हुए जीवों के वचनयोग और अनुभय वचनयोग पाया जाता है अतः द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव राशि को एकत्रित करके और उसे वचनयोग और काययोग के काल के जोड़ रूप प्रमाण से खण्डित करके जो एक भाग लब्ध आवे उसे वचनयोग के काल से गुणित करके जो प्रमाण हो उसमें पंचेन्द्रिय अनुभय वचनयोगी राशि के मिला देने पर अनुभय वचनयोगी जीव राशि होती है । इसमें सत्य वचनयोगी जीव राशि आदि शेष वचनयोगी जीव राशियों के मिला देने पर वचनयोगी जीव-राशि होती है । यहाँ पर अद्धासमास के लिए आवली के गुणकार रूप से स्थापित संख्यात से प्रतरांगुल के नीचे भागहार रूप से स्थापित संख्यात चूंकि संख्यात गुणा है अतः प्रकृत में प्रतरांगुल का संख्यातवां भाग भागहार है । सेसाणं मणिजो गिभंगो । -- षट्० खण्ड ० १ । २ । सू १०९ । पु ३ । पृष्ठ० ३९० टीका - जधा मणजोगरासी ओघसासणादीणं संखेज्जदिभागो, तहा वचिजोगि असच्चमोसवचिजोगीसु सासणादओ ओघसासणादीणं संखेज्नदिभागो । सेसं सुगमं । संपहि अप्पाबहुगबलेण पुव्विल्लसुत्तेसु वुत्तरासीणमवहारकाला परुविज्जते । तं जहा संखेज्जरुवेहि सूचिअंगुले भागे हिदे लद्ध वग्गिदे वचिजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरुवेहि खंडिय लद्ध तम्हि चेव पक्खित्ते असच्चमोसवचिजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरुवेहि गुणिदे वेउन्थिकाय जो गिअवहार कालो होदि । तम्हि संखेज्जरुवेहि गुणिदे सच्चमोसवचिजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरुवेहि गुणिदे मोसवचिजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरुवेहि गुणिदे सच्चवचिजोगि अवहारकालो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy