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________________ ( २३७ ) टोका–कुदो ? मिच्छादिट्ठीणमोदइएण, सासणाणं पारिणामिएण, कम्मइयकायजोगिअसंजदसम्माविट्ठीणं ओवसमिय-खइय-खओवसमियभावेहि, सजोगिकेवलोणं खइएण भावेण ओघम्मि गदगुणट्ठाणेहि साधम्मुवलंभा। .१० सयोगी और भाव ___x x x। सजोगो त्ति को भावो? अणादिपारिणामिओ भावो। णोवसमिओ, मोहणीए अणुवसंते वि जोगुवलंभा। ण खइओ, अण्णप्पसरूवस्स कम्माणं खएणुप्पत्तिविरोहा । ग घादिकम्मोदयजणिओ, ण? वि धादिकम्मोदए केवलिम्हि जोगुवलंभा। णो अघादिकम्मोदयजणिदो वि, संते वि अघादिकम्मोदए अजोगिम्हि जोगाणुवलंभा। ण सरीरणामकम्मोदयजणिदो वि, पोग्गलविवाइयाणं जीवपरिफद्दणहेउत्तविरोहा । कम्मइयसरीरं ण पोग्गलविवाई, तदो पोग्गलाणं वण्णरस-गंध-फास-संठाणागमणादीणमणुवलंभा। तदुप्पाइदो जोगो होदु चे ण, कम्मइयसरीरं पि पोग्गलविवाई चेव, सव्वकम्माणमासयत्तादो। कम्मइओदयविण?समए चेव जोगविणासदसणादो कम्मइयसरीरजणिदो जोगो चे ण, अघाइकम्मोदयविणासाणंतरं विणस्संतभवियत्तस्स पारिणामियस्स ओदइयत्तप्पसंगा। तदो सिद्ध जोगस्स पारिणामियत्तं । अधवा ओदइओ जोगो, सरीणामकम्मोदयविणासाणंतरं जोगविणासुवलंभा। ण च भवियत्तेण विउवचारो, कम्मसंबंध विरोहिणो तस्स कम्मणिदत्तविरोहा। -षट् खण्ड ० १, ७ । सू ४८ टीका । पु ५ । पृष्ठ० २२५ । २६ जोगमगणा वि ओदइया, णामकम्मस्स उदीरणोदयजणिदत्तादो। -षट्० खण्ड० ४, १ । सू ६६ । टीका । पु ९ । पृष्ठ० ३१६ 'सयोग' . यह कौन सा भाव है ? अनादि पारिणामिक भाव है, क्योंकि योग औपशमिक भाव तो नहीं है, क्योंकि मोहनीय कर्म के उपशम नहीं होने पर भी योग प्राप्त होता है। वह क्षायिक भाव भी नहीं है, क्योंकि आत्मस्वरूप से रहित कर्मों के क्षय से योग की उत्पत्ति मानने में विरोध आता है। योग घातिकर्मोदयजनित भी नहीं है, क्योंकि घातिकर्मोदय के नष्ट हो जाने पर भी सयोगिकेवली में योग का सद्भाव रहता है। योग अघातिकर्मोदयजनित भी नहीं है, क्योंकि अघातिकर्मोदय के सद्भाव में भी अयोगिकेवली में योग नहीं रहता है। योग शरीर नामकर्मोदयजनित भी नहीं है, क्योंकि पुद्गलविपाकी प्रकृतियों को जीव-परिस्पन्द का कारण मानने में विरोध आता है। यद्यपि कार्मणशरीर पुद्गलविपाकी नहीं है, क्योंकि उससे पुद्गलों के वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श और संस्थान आदि का आगमनादि नहीं होता है ; फिर भी योग को कार्मण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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