SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२५ ) एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट एक समय कम बाईस हजार वर्षकाल है। वैक्रियशरीर की संघातनकृति की प्ररूपणा ओघ के समान है। आहारकशरीर की संघातनकृति की प्ररूपणा ओघ के समान है। इसके शेष दो पदों की प्ररूपणा मनो. योगियों के समान है। तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीव की अपेक्षा जघन्यतः अंतमुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात पुद्गलपरावर्तन प्रमाण अनन्तकाल है । औदारिककाययोगियों में औदारिकशरीर की संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति का नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट कुछ कम बाईस हजार वर्ष काल है । वैक्रियिकशरीर की संघातनकृति का नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट आवली का असंख्यातवां भाग काल है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कृष्ट से एक समय काल है। वैक्रियिकशरीर की परिशातन व संघातन-परिशातनकृति का नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्तकाल है। औदारिकमिश्रकाययोगियों में औदारिकशरीर की संघातनकृति की प्ररूपणा ओघ के समान है। औदारिक शरीर की संघातन-परिशातनकृति का नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से एक समय कम अन्तमुहूर्तकाल है। तेजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातन कृति का नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्तकाल है । वैक्रियिककाययोगियो में वैक्रियिक, तैजस और कार्मणशरीर संबंधी संघातनपरिशातनकृति की प्ररूपणा मनोयोगियों के समान है। वैक्रियमिश्रकाययोगियों में वैक्रियिकशरीर की संघातनकृति की प्ररूपणा देवों के समान है। वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति का नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाणकाल है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्तकाल है । आहारककाययोगियों में औदारिकशरीर की परिशातनकृति तथा आहारक, तेजस और कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति का नाना जीवों की अपेक्षा और एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्तकाल है। आहारकमिश्रकाययोगियों में औदारिकशरीर की परिशातनकृति तथा आहारक, तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति का नाना जीवों की व एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्तकाल है। आहारकशरीर की संघातनकृति की प्ररूपणा ओघ के समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy