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________________ ( २०१) टोका-तं जहा-सत्तट्ठ जणा जावुक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेसा वा एक्क-वे-तिण्णि समए आदि कादूण जाव उक्कसेण समऊण-छआवलियाओ सासणद्धा अस्थि त्ति देवेसु उववण्णा। ते सव्वे कमेण मिच्छत्तं गदा। तस्समए चेव पुव्वं व सासणा देवेसुववणा। एवं णिरंतरं गाणाजीवे अस्सिदूण सासणद्धा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता सगरासीदो असंखेज्जगुणा जादा त्ति। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं । - पट० खण्ड ० १ । ५ । सू २०७ । पु ४ । पृष्ठ० ४३० टीका-तं जधा-एक्को सासणो सगद्धाए एगसमओ अत्थि त्ति देवेसुववण्णो, विदियसमए मिच्छत्तं गदो। लद्धो एगसमओ। उक्कस्सेण छ आवलियाओ समऊणाओ। -षट० खण्ड० १ । ५ । सू २०८ । पु ४ । पृष्ठ० ४३० टीका-तं जधा-एक्को तिरिक्खो मणुस्सो वा उवसमसम्मत्तद्धाए छ आवलियाओ अत्थि त्ति आसाणं गंतूण एगसमयमच्छिय उजुगदीए देवेसुवधज्जिय समऊण-छ-आवलियाओ आसाणेणच्छिय मिच्छत्तं गदो। वैक्रियमिश्रकाययोगी जीवों में मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक रहते हैं ? । २०१। नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्तकाल तक होते हैं । अस्तु यहाँ पर पहले मिथ्यादृष्टि का जघन्यकाल कहते हैं। सात, आठ, अथवा बहुत से द्रव्यलिंगी जीव उपरिम वेयकों में उत्पन्न हुए और सर्वलघु अंतमुहर्तकाल से पर्याप्तपने को प्राप्त हुए। अब सम्यग्दृष्टि का जघन्यकाल कहते हैं। संख्यात संयत दो विग्रह करके सर्वार्थसिद्धविमानवासी देवों में पर्याप्तियों की पूर्णता को प्राप्त हुए। बहुत सी पुद्गलवर्गणाओं के ग्रहण कराने के लिए दो विग्रह कराये गए हैं । अल्पकाल के द्वारा पर्याप्तियों के सम्पन्न करने के लिए बहुत से पुद्गलों का ग्रहण आवश्यक है। शंका-मिथ्यादृष्टि जीव के दो विग्रह क्यों नहीं कराये गये हैं। समाधान नहीं, क्योंकि, उनमें भी प्रतिषेध का अभाव है। अर्थात् मिथ्यादृष्टि जीव भी दो विग्रह कर सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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