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________________ ( १७६ ) टीका-ओरालियकायजोगेण सह एदस्स विरोहादो। औदारिककाययोगी जीव स्वस्थान व समुद्घात की अपेक्षा सर्वलोक में रहते हैं । अस्तु स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात की अपेक्षा उक्त जीव सर्वलोक में रहते हैं, क्योंकि सर्वत्र अवस्थान के अविरोधी औदारिककाययोगी जीवों के मारणान्तिकसमुद्घात होता है। विहारपद की अपेक्षा तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में, तिर्यगलोक के संख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि सनालि को छोड़कर उक्त जीवों का अन्यत्र विहार नहीं है । वैक्रियिकसमुद्घात, तेजससमुद्घात और दंडसमुद्घात को प्राप्त उक्त जीव चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं। विशेष इतना है कि तैजससमुद्घात को प्राप्त उक्त जीव मानुष क्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं। कपाटसमुद्घात, प्रतरसमुद्घात, लोकपूरणसमुद्घात और आहारकसमुद्घात पद नहीं है, क्योंकि औदारिककाययोग के साथ उनका विरोध है। औदारिककाययोगी जीवों के उपपादपद नहीं होता, क्योंकि औदारिककाययोग के साथ इसका विरोध है। .०५ वैक्रिय काययोगी कितने क्षेत्र में बेउन्वियकायजोगी सत्थाणेण समुग्धादेश केवडिखेत्ते ? -षट्० वण्ड. २ । ६ । सू ५९ । पु ७ पृष्ठ• ३४३ टोका-सुगमं। लोगस्स असंखेज्जदिभागे। --षट्० खण्ड• २ । ६ । सू ६० । पु ७ । पृष्ठ० ३४३ टीका-एदस्सत्थो वुच्चदे-सत्थाणसत्थाण-विहारवदि-सत्थाण-वेयणकसाय-वेउवियपदेहि बेउब्वियकायजोगिणो तिण्हं लोगाणमस खेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जविभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे। कुदो? पहाणीकयजोइसियरासित्तादो। मारणंतियसमुग्धादेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, गरतिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणे। एत्थ ओवट्टणं जाणिय कायव्वं । उववादो णत्यि। -षट् खण्ड० २।६। सू ६१ । पु७ । पृष्ठ. ३४३ । ४ टीका-वेउन्वियकायजोगेण उववादस्स विरोहादो। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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