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________________ ( १६५ ) गुणो फोसिदो । एसो वासद्दत्थो । विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोद्द सभागा देसूणा फोसिदा । कुदो ? अट्ठरज्जुबाहल्ललोगणालीए मण-वचिजोगीणं विहारुवलंभादो । समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? टीका - सुगममेदं । - षट्० खण्ड ० २ । ७ । सू १०२ । पु ७ । पृष्ठ० ४१२ लोगस्स असंखेज्ददिभागो । -षट्ο ० खण्ड ० २ । ७ । सू १०३ । पु७ 1 पृष्ठ ४१२ टीका - एत्थ खेत्तवण्णणा कायव्वा, वट्टमाणप्पणादो । अड्डचो सभागा देणा सव्वलोगो वा । - षट्० खण्ड० २ । ७ । सू १०४ । पु ७ । पृष्ठ० ४१२ टीका – आहार - तेजइयपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणूसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो । एसो वासद्दत्थो । धेयण- कसायवेड व्विएहि अटुचो सभागा देणा कोसिदा, अट्ठरज्जुआयदलोगणालीए सव्वत्थ तोदे काले aur - कसाय - विउव्वणाणमुवलंभादो । मारणंतिएण सव्वलोगो । उववादो णत्थि | - षट्० खण्ड० २ । ७ । सू १०५ । पु ७ | पृष्ठ० ४१३ टीका - तत्थ मण वचिजोगाणमभावादो । योगमार्गनानुसार पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीव स्वस्थान पदों से लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं । Jain Education International अस्तु यह कथन वर्तमानकाल की अपेक्षा है । अतः यहाँ क्षेत्र - प्ररूपणा करनी चाहिए । अथवा उक्त जीव स्वस्थान पदों में कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं । ( १०१ ) यहाँ प्रथम वा शब्द से सूचित अर्थ रहते हैं - स्वस्थान की अपेक्षा प्रकृत जीवों द्वारा तीन लोक का असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवां भाग और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्द से सूचित अर्थ है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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