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________________ ( १६३ ) छ चोभागा देणा । -षट्० खण्ड ० १ । ४ । सू १०० । पु ४ । पृष्ठ० २७० । १ टीका - एत्थ वि उववादपदमेक्कं चेव । तिरिक्खासंजदसम्माइट्ठिणो जेवरि छ रज्जुओ गंतणुप्पज्जंति, तेण फोसणखेत्तपरुवणं छ- चोद्दस भागमेत्तं होदि । हेट्ठा फोसणं पंचरज्जुपमाणं ण लब्भदे, णेरइयासंजदसम्मादिट्ठीणं तिरिक्खे सुववादाभावा । सजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं लोगस्स असंखेज्जा भागा सव्वलोगो वा । -षट्० खण्ड ० १ । ४ । सू १०१ । पु ४ । पृष्ठ० २७१ टीका - पदरगद केवलीहि लोगस्स असंखेज्जा भागा फोसिदा, लोगपेरंतदिवादवलएसु अपविट्टजीवपदेसत्तादो। लोगपूरणे सव्वलोगो फोसिदो, वादवलएसु वि पविट्ठजीवपदेसत्तादो । कार्मणका योगी जीवों में मिथ्यादृष्टि जीवों की स्पर्शनप्ररूपणा ओघ के समान है । अस्तु स्वस्थान- स्वस्थान, वेदना, कषाय और उपपादपदपरिणत कार्मणकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवों ने तीनों ही कालों में चूंकि सर्वलोक स्पर्श किया है । इसलिए सूत्र में 'ओघ' ऐसा पद कहा है । यहाँ अर्थात् कार्मणकाययोगी मिध्यादृष्टियों के, विहारवत्स्वस्थान, वैक्रियिक और मारणान्तिक समुद्घात, इतने पद नहीं होते हैं । कार्मण काययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियों ने लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है । चूंकि इस सूत्र की वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा ओघ के समान है | कार्मणकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों ने तीनों कालों की अपेक्षा कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं । यहाँ पर उपपादपद को छोड़कर शेष पद नहीं है, क्योंकि कार्मणकाययोग की विवक्षा की गई है । उपपादपद में वर्तमान सासादनसम्यग्दृष्टि जीव मेरु के मूल भाग से नीचे पांच राजू और ऊपर अच्युतकल्प तक छह राजू प्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन करते हैं, अतः ग्यारह बटे चौदह (१४) भाग प्रमाण स्पर्श किया हुआ क्षेत्र हो जाता है । कार्मणकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों ने लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श किया हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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