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( १५१ ), और मनुष्य क्षेत्र से असंख्यातगुणे क्षेत्र की अपेक्षा तथा अतीतकाल में आठ बटे चौदह () भाग प्रमाण से तुल्यता पाई जाती है, इसलिए सुत्र में 'ओघ' ऐसा पद कहा है।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती काययोगी जीवों का स्पर्शन-क्षेत्र ओघ के समान है।
अस्तु इन ग्यारह गुणस्थानों की तीनों कालों को आश्रय लेकर ग्यारह गुणस्थानों की स्वस्थानादि पर-सबंधी प्ररूपणा की गई है, उसी प्रकार से यहाँ पर भी करना चाहिए, क्योंकि यहां पर कोई विशेषता नहीं है।
काययोगी सयोगिकेवली का स्पर्शन-क्षेत्र ओघ के समान लोक का असंख्यातवां भाग, असंख्यातबहुभाय और सर्वलोक है।
सयोगीकेवली में दण्ड, कपाटादि चारों समुद्घात काययोग के अविभाभावी होते हैं, इस बात का मंदमेधावीजनों को ज्ञान कराने के लिए इस सूत्र का पृथक् निर्माण किया गया है।
अस्तु पृथक सूत्र का प्रारम्भ काययोगी सयोगिकेवली में चारों प्रकार के समुद्धातों का अस्तित्त्व प्रतिपादन करने रूप फल के लिए है । .०३ औदारिक-काययोगी को क्षेत्र स्पर्शना
ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी ओघं।
.. -षट् खण्ड ० १ । ४ । सू ८१ । पु ४ । पृष्ठ० २५२ टोका-दव्वट्ठियपरूवणाए ओघत्तं जुज्जदे। पज्जवट्ठियपरुवणाए पुण ओघत्तं णत्थि, ओरालियजोगे णिरुद्ध विहारवेउब्वियपदाणमट्ठ-चोद्दसभागताणुवलंभादो। तदो एत्थ भेदारूवणा कोरचे-सत्थाणसत्थाण-वेदण-कसायमारणंतियपरिणदेहि तिसु वि कालेसु सन्तलोगो पोसिदो। उघवादो पत्थि, दोण्हं सहाणवट्ठाणलक्खणविरोहा। चट्टमाणकाले बेउन्चियपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो पोसिदो। तीदाणागदेसु तिण्हं लोगाणं संखेज्जदिभागो, दोलोगेहितो असंखेज्जगुणो, वाउक्काइयवेउव्वियफोसणस्स पाधण्णविवक्खाए। विहारपरिणदेहि ओरालियकायजोगिमिच्छादिट्ठीहि वट्टमाणकाले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स सखेज्जदिभागो, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणो पोसिदो। तीदाणागदकालेसु तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणो पोसिदो।
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