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________________ ( १३३ ) अनुभय मनोयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियों का द्रव्य उक्त सम्यमिथ्यादृष्टियों के द्रव्य से असंख्यातगुणा है। पल्योपम उक्त असंयत सम्यग्दृष्टियों के द्रव्य से असंख्यातगुणा है। अनुभय मनोयोगी मिथ्यादृष्टियों का अवहारकाल पल्योपम से असंख्यातगुणा है। उन्हीं की विष्कंभ सूची अवहारकाल से असंख्यातगुणी है। जगश्रेणी विष्कंभ सूची से असंख्यातगुणी है। उन्हीं अनुभय मनोयोगी मिथ्यादृष्टियों का द्रव्य जग-श्रेणी से असंख्यातगुणा है । जगप्रतर द्रव्य प्रमाण से असंख्यातगुणा है। लोक जगप्रतर से असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार शेष चार मनोयोगी और पांचों वचनयोगियों का परस्थान अल्पबहुत्व कहना चाहिए। ___वैक्रियिक काययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल सबसे स्तोक है । इसके ऊपर मनोयोग के परस्थान अल्पबहुत्व के समान जानना चाहिए। वैक्रियिकमिश्र-काययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल सबसे स्तोक है। सासादन सम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल असंयतसम्यग्दृष्टियों के अवहारकाल से असंख्यातगुणा है। उन्हीं सासादन सम्यग्दृष्टि वैक्रियिकमिश्र-काययोगियों का द्रव्य अपने अवहारकाल से असंख्यातगुणा है। असंयतसम्यग्दृष्टि वैऋियिकमिश्र-काययोगियों का द्रव्य सासादन द्रव्य से असंख्यातगुणा है । इसके ऊपर मनोयोगियों के परस्थान अल्पबहुत्व के समान जानना चाहिए । काययोगी उपशामक सबसे स्तोक है। काययोगी क्षपक काययोगी उपशामकों से संख्यातगुषे हैं। इसी प्रकार पल्योपम तक ले जाना चाहिए। पल्योपम के ऊपर काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव अनंतगुणे हैं । इसी प्रकार औदारिककाययोगियों का भी कथन करना चाहिए । औदारिकमिश्र काययोगियों में सयोगी केवली जीव सबसे स्तोक है। असंयतसम्यग्दृष्टि जीव सयोगी केवलियों से संख्यातगुणे हैं। सासादन सम्यग्दृष्टियों का अचहारकाल असंयतसम्यग्दृष्टियों से असंख्यातगुणा है। उन्हीं का द्रव्य अपने अवहारकाल से असंख्यातगुणा है। पल्योपम सासादन सम्यग्दृष्टि औदारिकमिश्रकाययोगियों से असंख्यातगुणा है । औदारिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीव पल्योपम से अनंतगुणे हैं । __ आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग में स्वस्थान अथवा परस्थान अल्प बहुत्व नहीं पाया जाता है । कार्मणकाययोगियों में सयोगी केवली जीव सबसे स्तोक है। असंयतसम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल सयोगिकेवलियों के प्रमाण से असंख्यातगुणा है । सासादन सम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल असंयत सम्यग्दृष्टियों के अवहारकाल से असंख्यातगुणा है। उन्हीं का द्रष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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