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________________ ( १२० ) वेउव्वियसरीरस्स, चउव्विहस्स य मणजोगस्स, चउन्विहस्स य वइजोगस्सएएसि णं दसह वि तुल्ले उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे। -भग० श २५ । उ १ । सू ७ १ कार्मण शरीर का जघन्य काययोग सबसे स्तोक होता है। २ उससे औदारिकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा होता है। ३ उससे वैक्रियमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा होता है। ४ उससे औदारिक शरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा होता है। ५ उससे वैक्रिय शरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा होता है। ६ उससे कार्मण शरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा होता है। ७ उससे आहारकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ८ उससे उसी का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। ९-१० उससे औदारिकमिश्र और वैक्रियमिश्र का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है तथा परस्पर तुल्य है। ११ उससे असत्यमृषा मनोयोग का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। १२ उससे आहारक शरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। १३-१९ उससे तीन प्रकार के मनोयोग और चार प्रकार के वचन योग, इन सातों का जघन्य योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है। २० उससे आहारक शरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। २१-३० उससे औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, चार प्रकार के मनोयोग तथा चार प्रकार के वचनयोग-- इन दसों का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है तथा परस्पर तुल्य है। •३४ सयोगी और अल्पबहुत्व एएसि णं भंते ! चोद्दसविहाणं संसारसमावण्णगाणं जीवाणं जहण्णुक्कोसगस्स जोगस्स कयरेहितो कयरे जाव विसेसाहिया वा? गोयमा! १ सव्वत्थोवे सुहुमस्स अपज्जत्तगस्स जहण्णए जोए २ बायरस्स अपज्जत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ३ बेईदियस्स अपज्जत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुण ४ एवं तेइ दियस्स ५ एवं चरिदियस्स ६ असण्णिस्स पंचिदियस्स अपज्जत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ७ सण्णिस्स पंचिदियस्स अपज्जतगस्स जहण्णए जोए असखेज्जगुणे ८ सुहुमस्स पज्जत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ९ बायरस्स पज्जत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुण १० सुहमस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे ११ बायरस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असखेज्जगुणे १२ सुहुमस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे १३ बायरस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे १४ बेइदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे १५ एवं तेइ दियस्स. १८ एवं जाव सण्णिपंचिदियस्स पज्जतगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुण १९ बेईदियस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २० एवं तेइ दियस्स वि २१ एवं चरिदियस्स वि २३ एवं जाव सण्णिपंचिदियस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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