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________________ ( ११५ ) .२८ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण सण्णिचिदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टोका-सुगम। -षट् ० खण्ड ४ । २ । ४ सू १७२ । पु० १० । पृष्ठ० ४०२-४०३ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । २९ उपयुक्त असंख्यातगुण प्रमाण एवमेक्केक्कस्स जोगगुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।। टीका पुवुत्तासेसजोगट्ठाणाणं गुणगारस्स पमाणमेदेण सुत्तेण परूविदं । पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो गुणगारो होदि ति कधं णव्वदे ? एवम्हादो चेव सुत्तोदो। ण च पमाणंतरमवेक्खदे, अणवत्थापसंगादो। -षद् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १७३ । पु० १० । पृष्ठ० ४०३ इस प्रकार प्रत्येक जीव के गुणकार पल्यौपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इस सूत्र द्वारा पूर्वोक्त समस्त योग स्थानों के गुणकार का प्रमाण कहा गया है । अस्तु यह सूत्र स्वयं प्रमाणभूत होने से किसी अन्य प्रमाण की अपेक्षा नहीं करता, क्योंकि ऐसा होने पर अनवस्था दोष का प्रसंग आता है। •३० सयोगी जीवों का अल्पबहुत्व जोगाणुवादेण सव्वत्थोवा मणजोगी ॥१०७॥ टीका-कुदो ? देवाणं संखेज्जदिभागप्पमाणत्तादो। वचिजोगी संखेज्जगुणा ॥१०॥ टीका-कुदो? पदरंगुलस्स संखेज्जदिभागेण वचिजोगिअवहारकालेण संखेज्जपदरंगुलमेत्ते मणजोगिअवहारकाले भागे हिदे संखेज्जरूवोवलंभादो। अजोगी अर्णतगुणा ॥१०९॥ टोका-को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो। कोयजोगी अणंतगुणा ॥११०॥ टीका-गुणगारो अभवसिद्धिएहितो सिद्धहितो सव्वजीवपढमवग्गमूलादो वि अणंतगुणो। अण्णेण पयारेण जोगप्पबहुअपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि । सव्वत्थोवा आहारमिस्सकायजोगी॥१११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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