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________________ ( १०७ ) ३४ सयोगी जीव और अल्पबहुत्व .२ जीव समास के आश्रय से योग का अल्पबहुत्व .०१ सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के अल्पतम योग सव्वत्थोवो सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो १४५। टीका–एवं उत्ते सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स विग्गहगदीए वट्टमाणस्स जहण्णओ उववादजोगो घेत्तव्यो। पढमसमयआहारयपढमसमयतब्भवत्थस्स सुहुमेइदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ उववादजोगो किण्ण गहिदो ? ण, गोकम्मसहकारिकारणबलेण जोगे उड्डिमागवे तत्थं जोगस्स जहण्णत्तसंभवाभावादो। -षट् ० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १४५ । पु. १. पृष्ठ० ३९६ अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग सबसे न्यून है । ऐसा कहने पर उस भव के प्रथम समय में स्थित हुआ व विग्रहगति में वर्तमान ऐसे सक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य उपपाद योग को ग्रहण करना चाहिए। आहारक होने के प्रथम समय में रहने वाले व उस भव के प्रथम समय में स्थित हुए सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य उपपाद योग को नहीं ग्रहण करना चाहिए । क्योंकि नोकर्म सहकारी कारण के बल से योग की वृद्धि को प्राप्त होने पर वहां योग की जघन्यता संभव नहीं है । .०२ बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण वादरेइ दियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो। टोका–को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। कुदो ? बादरेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स विग्गहगदीए वट्टमाणस्स जहण्णउववादजोगादो हेट्टिमसुहुमेइ दियलद्धिअपज्जत्तउववादजोगट्टाणेसु असंखेज्जजोगगुणहाणीणं संभवादो। तत्थतणणाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगुणिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे गुणगाररासी होदि त्ति वुत्तं होदि । -षट् ० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १४६ । पु. १० । पृष्ठ० ३९६ । ७ बादर एकेन्द्रिय का अपर्याप्तक का जघन्य योग उससे असंख्यातगुणा है।। गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है, क्योंकि उस भव के प्रथम समय में स्थित व विग्रहगति में वर्तमान ऐसे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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