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________________ ( ८१ ) •४ सयोगी एकेन्द्रिय का विभाग ॥ पृथ्वीकायिक , , अप्कायिक , तेउकायिक , बायुकायिक , " वनस्पतिकायिक , पुढविकाइया णं भंते ! कि ओरालियसरीरकायप्पओगी ओरालिमोसासरीरकायप्पओगी कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा ! पुढविकाइया णं ओरालियसरीरकायप्पओगी वि ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी वि कम्मासरीरकायप्पओगी वि। एवं जाव वणप्फतिकाइयाणं । णवरं वाउक्काइया वेउन्वियसरीरकायप्पओगी वि वेउब्वियमीसासरीरकायप्पओगी वि। -पण्ण० प १६ । सू १०८० । पृष्ठ० २६३ टोका-पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिषु औदारिकशरीरकायप्रयोगिणोऽपि औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणोऽपि कार्मणशरीरकायप्रयोगिणोऽपि सदा बहव एव लभ्यन्ते इति पदत्रयबहुवचनात्मकः प्रत्येकमेक एव भंगः, वायुकायिकेष्वौदारिकद्विकवैक्रियद्विककार्मणशरीरलक्षणपदपञ्चकबहुवचनात्मक एको भंगः, तेषु वैक्रियशरोरिणां वैक्रियमिश्रशरीरिणां च सदैव बहुत्वेन लभ्यमानत्वात् । पृथ्वीकायिक जीव ( बहुवचन ) औदारिक शरीर कायप्रयोग वाले, औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोग वाले और कार्ममशरीर कायप्रयोग वाले भी होते हैं। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों के विषय में चानना चाहिए। किन्तु वायुकायिक जीव वैक्रियशरीर कायप्रयोग वाले और वैक्रियमिश्रशरीर कायप्रयोगवाले भी होते हैं। पृथ्वी, अप, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय में (बहुवचन) औदारिकशरीर-कायप्रयोगवाले, औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगवाले और कामंणशरीर-कायप्रयोगवाले भी हमेशा बहुत होते हैं। अतः प्रत्येक में तीन पदों के बहुवचन रूप एक ही भंग होता है। वायुकायिकों में औदारिकद्विक, वैक्रियद्विक और कार्मणशरीर-इन पाँच पदों के बहुधचनरूप एक भंग होता है क्योंकि उनमें वैक्रियशरीरवाले और वैक्रियमित्र शरीरवाले हमेशा बहुत होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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