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________________ ( ४८ ) •२ सयोगी जीव के भेद दो भेद सजोगी णं भंते ! सजोगीत्ति पुच्छा ? गोयमा ! सजोगी दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सज्जवसिए। —पण्ण. प. १८ । द्वा।८ । सू ९ सयोगी जीव के सयोगीत्व की अपेक्षा दो प्रकार होते हैं-(१) अनादि-अपर्यव सित सयोगी अभव्यत्व की अपेक्षा तथा (२) अनादि सपर्यवसित ( भव्यत्व की अपेक्षा)। तीन भेद योग की अपेक्षा सयोगी जीव के तीन भेद होते हैं – यथा मनोयोगी वचन योगी तथा काय योगी। मनोयोगी तथा वचन योग की स्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतमुहर्त की तथा काययोगी की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त व उत्कृष्ट अनंत काल की है। •२६ सयोगी जीव का योग को अपेक्षा उत्पत्ति मरणः.१ योग की अपेक्षा दंडक में उत्पत्ति-मरण के नियम यह निश्चित है कि अशुभ योगी नारकी सातों नारकी में उत्पन्न होता है, अशुभ योगी रूप में से ही मरण को प्राप्त होता हैं। उस अशुभ योगी के तीन लेश्या होती हैकृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या । इसी प्रकार असुरकुमार यावत् स्तनित देवों के सम्बन्ध में कहना। लेकिन शुभ योग का भी कथन करना । कि उनमें कृष्ण, नील, कापोत-तेजी लेश्या होती है। यह निश्चित है अशुभ योगी पृथ्वीकायिक जीव अशुभ योगी पृथ्वी काय में उत्पन्न होता है और अशुभ योग रूप में मरण को प्राप्त होता है। प्रशस्त अध्यवसायी-शुभयोगी पृथ्वीकायिक जीव तेजो लेश्या के साथ तेजो लेशी पृथ्वी कायिक में उत्पन्न होता है और अशुभ योग रूप में मरण को प्राप्त होता है लेकिन तेजो लेश्या में उत्पन्न हो सकता है लेकिन मरण को प्राप्त नहीं होता है। इसी प्रकार अप्काय व वनस्पतिकायिक के जीव के सम्बन्ध में जानना चाहिए। अशुभ योगी अग्निकायिक जीव अशुभ योगी अग्निकाय में उत्पन्न होते हैं और अशुभ योय रूप में मरण को प्राप्त होते हैं। अशुभ योगी वायुकायिक जीव अशुभ योगी बायुकाय मैं उत्पन्न होते हैं और अशुभ योग रूप में मरण को प्राप्त होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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