SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४५ ) अयोगी जीव आहार नहीं लेते हैं अतः वे अनाहारक है । •२१ सयोगी जीव और आत्मा को अभिन्नता अण्णउत्थियाणं भंते! एवं आइक्खं तिजाव परुर्वेति –एवं खलु xxx एवं मणजोए, वइजोए, कायजोए xxx वट्टमाणस्स अण्णे जीवे, अण्णे जीवाय xxx। गोयमा ! जणं ते अण्णउत्थिया एवं आइक्खंति जाव मिच्छ ते एवं आहेसु' अहं पुण गोयमा। एवं खलु आइक्खामि जाव परुवेमि-'एवं खलु xxx एवं मणजोए, वइजोए, कायजोए x x x वट्टमाणस्स एवं सच्चेव जीवाया। -भग० १७ । उ २ । सू ९ अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं यावत् परूपित करते हैं कि xxx मनो योगवचन योग-काय योग में x x x आदि में वर्तमान प्राणी या जीव अन्य है, और जीवात्मा अन्य है। यह कथन उनका मिथ्या है। मनो योग यावत् काय योग में वर्तमान प्राणी जीव है और वही जीवात्मा है। •२२ सयोगी जीव की संख्या .१ औदारिक काय योग की संख्या .२ औदारिक मिश्र काय योग की संख्या .३ कार्मण काय योग की संख्या कम्मोरालियमिस्सय ओरालद्धासु संचिद अणंता। कम्मोरालियमिस्सय ओरालियजोगिणो जीवा। -गोजी० गा० २६४ कामंण काय योग, औदरिक मिश्र काय योग तथा औदारिक काय योग के आगे कहे गये कालों में संचित हुए कार्मण काय योगी, औदारिक मिश्र काय योगी और औदारिक काय योग जीव प्रत्येक अनंतानंत जानना चाहिए । •२२ योग की संख्या आहारक काय योग की संख्या आहारकामिश्रकाय योग की संख्या आहारकायजोगाचउवणं होंति एक्कसमयम्मि। आहारमिस्सजोना सत्तावीसादु उक्कस्सा ॥२७०॥ -गोजी० गा० २७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy