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________________ ( ३८ ) इस प्रकार ले जाने पर यहाँ पर अन्तिम विकल्प कहा जाता है- जलचरों में जघन्य योग और जघन्य बन्धक काल से तिर्यच आयु को बाँधकर कदलीघात कर उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट बन्धक काल से नारकायु को बंधाने पर अन्तिम विकल्प होता है। इसी प्रकार तिर्यंच जलचर के आयु द्रव्य का आश्रय लेकर नारकायु अपने जघन्य द्रव्य को लेकर उत्कृष्ट द्रव्य तक एक परमाणु अधिक आदि के क्रम से निरन्तर जाते हुए उत्कृष्ट बन जाता है। .१७ सयोगी नोव और उत्पत्ति सयोगीनारको को आत्म प्रयोग ( योग रूप व्यापार से ) से उत्पत्ति (रइया) आयप्पओगेणं उववज्जंति णो परप्पओगेणं उववति । -भग• श २५ उ ७ । सू७ नारकी आत्म प्रयोग से उत्पन्न होते हैं पर प्रयोग से नहीं। सयोगी असुर कुमार यावत् वैमानिक देव की आत्म प्रयोग से उत्पत्ति ( असुर कुमारा।) जहा परइया तहेव गिरवसेसं जाव णो परप्पओगेणं उववज्जति । एवं एगिदियावज्जा जाव वेमाणिया। एगिदिया एवं चेव । गवरं चउसमइओ विग्गाहो, सेसंतं चेव । -भग. श २५ । उ८ । सू ८ असुर कुकार यावत् वैमानिकदेव आत्म प्रयोग से उत्पन्न होते हैं, पर प्रयोग से नहीं। १८ योग और कर्मबंध .१ णाणावरणिन्जं कि मणजोगी बंधइ, वयजोगी बंधइ, कायजोगी बंधइ, अजोगी बंधइ ? गोयमा! हेटिल्ला तिण्णि भयणाए, अजोगी ण बंध; एवं बेयणिज्जवज्जाओ, वेयणिज्ज हेटुिल्ला बंधंति, अजोगी ण बंधइ। -भग• श ६ । उ ३ । प्र ४७ मनी योगी, वचन योगी और काय-योगी ये तीनों ज्ञानावरणीय कर्म कदाचित् नहीं बाँधते हैं। अयोगी नहीं बाँधते हैं। इसी प्रकार वेदनीय कर्म को छोड़ कर शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में जानना चाहिए। ___ वैदनीय कर्म को मनोयोगी, वचन योगी और काय योगी बाँधते हैं। अयोगी नहीं बांधते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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