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________________ ( २९ ) आहारक काम योग में जीव समास वही संज्ञीपर्याप्त और आहारकमिश्र काय योग में संज्ञो अपर्याप्त एक-एक ही होता है । . ११ मनो योग- वचन योग और गुण स्थान मज्झिम चउमणवयणे सण्णिप्पहुडतु जाव सेसाणं जोगित्ति च अणुभयवयणं तु टीका - मध्यमेषु असत्योभयमनोवचनयोगेषु चतुर्षु संज्ञिमिथ्यादृष्ट्या - दीनि क्षीणकषायान्तानि द्वादश । तु पुनः सत्यानुभयमनोयोगयोः सत्यवचनयोगे च संज्ञिपर्याप्तमिथ्यादृष्ट्यादीनि सयोगान्तानि त्रयोदश गुणस्थानि भवन्ति । xxx अनुभय वचनयोगे तु गुणस्थानि विकलत्रयमिथ्यादृष्ट्यादीनि त्रयोदश । - १२ काय योग और गुण स्थान मध्यम अर्थात् असत्य और उभय मनो योग और वचन योग- इन चार में संज्ञी मिथ्या दृष्टि से लेकर क्षीण कषाय पर्यन्त बारह गुण स्थान होते हैं । तथा सत्य और अनुभव मनो योग और सत्य वचन योग में संज्ञीपर्याप्त मिथ्या दृष्टि से लेकर सयोगी केवली पर्यन्त तेरह गुण स्थान होते हैं । अनुभय वचन योग में विकलत्रय मिथ्या दृष्टि से तेरह गुण स्थान होते हैं । खीणोति ॥ वियलादो । - गोजी ० गा ६७९ ओरालं पज्जत्ते थावरकायादि जाव जोगित्ति । तम्मिस्समपज्जते चदुगुणठाणेसु नियमेण ॥ पर्याप्त मिथ्या टीका - औदारिककाययोगः एकेन्द्रियस्थावर काय दृष्ट्यादिसयोगान्त त्रयोदशगुणस्थानेषु भवति । तन्मित्रयोगः अपर्याप्त चतु गुण स्थानेष्वेव नियमेन । - १३ मज्झिमच उमणवयणे सण्णिध्वहुड तु जाव खीणोत्ति । सेसणं जोगिन्ति च अणुभयवयणं तु वियलादो ॥ Jain Education International दारिक काय योग एकेन्द्रिय स्थावर काय पर्याप्त मिथ्या दृष्टि से सयोगी केवली पर्यन्त तेरह गुण स्थानों में होता है । - गोजी० गा ६८० दारिक मिश्र का योग नियम से अपर्याप्त अबस्था में चार गुण स्थानों (१, २, ४, १३ ) में होता है । For Private & Personal Use Only - गोजी ० गा ६७९ www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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