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________________ ( २६ ) छ सु सव्वा तिउतिगं, इगिसुक्का अजोगि अलेस्सा। -चतुर्थ कर्म • गा ५० । पूर्वार्ध सयोगी केवली में तेरहवाँ गुण स्थान है। इस गुणस्थान तक शुक्ल लेश्या होती है । अयोगी गुणस्थान में अलेशी होता है । “१० योग और गुणस्थान .१ उक्तपञ्चदशयोगेषु मध्ये मिथ्यादृष्टिसासादनासंयतेषु त्रयोदश त्रयोदश भवन्ति आहारकतन्मिश्रयोः प्रमत्तादन्यत्राभावात् । मिश्रगुणस्थाने तेष्वपर्याप्तयोगत्रयं नेति दश । उपरि क्षीणकषायान्तेषु सप्तसु तत्रापि वैक्रियिकयोगाभावात् नव । प्रमत्तसंयते एकादश आहारकतन्मिश्रयोगयोरन पतितत्वात् । सयोगे सत्यानुभयमनोवाग्योगाः औदारिक तन्मिश्र कार्मणकाय योगाश्चेति सप्त । अयोगिजिने योगोनेति शून्यम् । -गोजी० गा० ७०४ । टीका पन्द्रह योगों में से-मिथ्या दृष्टि, सासादन और असयंत गुणस्थानों में तेरह-तेरह योग होते हैं। क्योंकि आहारक, आहारक मिश्र योग प्रमत्त गुणस्थान से अन्यत्र नहीं होते हैं। मिश्र गुण स्थान में उनमें से तीन अपर्याप्त योग न होने से दस योग होते हैं। ___ ऊपर क्षीणकषायपर्यंत ( सातवें से बारहवें गुण स्थान तक ) सात गुण स्थानों में वैक्रियिक काय योग न होने से नौ योग होते हैं। प्रमत्त संयत में आहारक-आहारक मिश्र के होने से ग्यारह योग होते हैं । सयोग केवली में सत्य, अनुभय वचन योग और मनोयोग तथा औदारिक, औदारि. मिश्र तथा कार्मण काययोग इस तरह सात योग होते हैं। अयोगी केवली में योग नहीं है। .२ मिच्छे सासणसम्मे पुवेदयदे कवाडजोगिम्मि। णरतिरिये वि य दोणि विहाँतित्ति जिणेहि णिहिट्ठ। -गोजी० गा ६८१ टीका-मिथ्यादृष्टौ सासादने पुवेदोदयासंयते कपाटसमुदघातसयोगे, चैतेषु अपर्याप्त-चतुर्गुणस्थानेषु स औदारिकमिश्र योगः स्यादित्यर्थः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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