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________________ ( १८ ) अपज्जत्तयस्स जहण्णएयंताणुवड्ढिजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सएयंताणुर्वाड्डजोगट्टाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा। तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणाम जोगट्टाणस्स अविभागपच्छेिदा असं खेज्जगुणा । तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सपरिणामजोग ट्राणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णएयंतावडजोगट्टाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस क्एयंताणुवड्डिजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव व्वित्तिज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगट्ठाणस्य अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा तस्सेव णिव्यत्तिपज्जत्तयस्स उस्सपरिणामजोगट्ठाणस्स अविभागपडिवछेदा असंखेज्जगुणा । एवं चैव तोइंदियादीणं पि परत्थाणअप्पबहुगं जाणिवण भाणिदव्वं । - षट्० खण्ड ४ । २ । ४ सू १७३ । पु० १० । पृष्ठ ४०६ । ८ बादर, सूक्ष्म, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मध्य में प्रत्येक लब्ध्यपर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त तथा निर्वृत्तिपर्याप्त भेद से भेद को प्राप्त जीव के जघन्य और उत्कृष्ट भेद से उपपाद, एकान्तानुवृद्धि तथा परिणाम योग स्थानों का जो अल्पबहुत्व होता है वह परस्थान अल्पबहुत्व कहलाता है । सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्त जीव के जघन्य उपपाद योगस्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद सबसे स्तोक है । उनसे उसके ही निवृत्त्य पर्याप्त जीव के जघन्य उपपाद योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसीके लब्ध्यपर्याप्त के उत्कृष्ट उपपादयोग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसके ही निवृत्त्य पर्याप्त के उत्कृष्ट उपपाद योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसी लब्ध्यपर्याप्त के जघन्य एकान्तानुवृद्धि योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसी निर्वृत्यपर्याप्त के जघन्य एकान्तावृद्धि योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसी लब्ध्यपर्याप्त के उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसी निर्वृत्त्यपर्याप्त के उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि इसके आगे योगस्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसी लब्ध्यपर्याप्त के जघन्य परिणाम योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसीके उत्कृष्ट परिणाम योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे निर्वृत्तिपर्याप्त के जघन्य परिणाम योगस्थान सम्बन्धि अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे. निवृत्तिपर्याप्त के उत्कृष्ट परिणाम योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यात - गुण हैं । इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय जीव के भी परस्थान अल्प- बहुत्व जानना चाहिए । Jain Education International द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के जघन्य उपपाद योग स्थान सम्बन्धी अविभाग प्रतिच्छेद सबसे स्तोक हैं । [ उनसे उसी लब्ध्यपर्याप्त के उत्कृष्ट उपपाद योग स्थान सम्बन्धी - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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