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________________ ( 58 ) करण और योग जैन सिद्धांत के पारिभाषिक शब्द है। करण का अर्थ है-साधन और योग का अर्थ है-प्रवृत्ति । मन, वचन और शरीर प्रवृत्ति के साधन है। अतः ये करण है। प्रवृत्ति के तीन रूप होते है-करना, करवाना और अनुमोदन करना, ये योग है। दूसरी परिभाषा के अनुसार मन, वचन और शरीर--ये तीन योग है तथा प्रवृत्ति के तीनों रूप करण है पच्चीस बोलका चौबीसवां बोल भांगा ४६ का है. उसमें योग-करण की चर्चा है संज्ञीतियं च पंचेन्द्रिय भी युगलिये होते हैं उनमें भी किसी को सम्यक्त्व भी आसकता है। उसकी प्राप्ति में शुभलेश्या के साथ शुभ योग भी होता है । नरक में निर्जरा के सात भेद होते है १. काय क्लेश, २. प्रतिसं लीनता, ३. प्रायश्चित; ४, विनय, ५. स्वाध्याय, ६. ध्यान, ७. व्युत्सग । काय क्लेश के अतिरिक्त छओं भेद अधिकतर सम्यक्त्वी नरक में होते हैं। ये नमस्कार महामन्त्रादि का यथा समय स्वाध्याय भी करते हैं। अनित्य-चिंतन ( ध्यान ) भी करते है । विनय वे ज्ञान, दर्शन आदि के रूप में करते हैं। निर्जरा में शुभयोग वहाँ होता है । नारक जीवों के सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय शुभयोग के साथ साता-वेदनीय भी होता है। तीर्थ करों के पांच कल्याणक के समय सात-वेदनीय कर्म का विपाकोदय हो सकता है। सातवीं नरक के नारकियों को औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय शुभयोगशुभलेश्यादि होते है। नरकगति में औपशमिक, क्षयोपशमिक, सास्वादान, क्षायिक साम्यक्त्व होता है लेकिन वेदक अभ्यक्त्व नहीं होता है । यद्यपि नरकगति में क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती है। वेदक सभ्यक्त्व नहीं होता है। औपश मिक, क्षायोपशमिक व सास्वादान सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय शुभयोग व शुभलेश्या होती है। 'शान के पाँच भेद है-१. मतिज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मनःपर्यवशान और ५. केवलज्ञान । ___ इन पाँचों ज्ञान की प्राप्ति के समय शुभ-योग व प्रशस्त लेश्या होती है। विभंगज्ञान की प्राप्ति के समय भी शुभलेश्या-शुभयोग होते हैं। यद्यपि केवलज्ञान की प्राप्ति के समय सिर्फ शुक्ललेश्या होती है। अन्य ज्ञानों की प्राप्ति के समय तीन प्रशस्त लेश्या में से किसी एक प्रशस्त लेश्या होती है। जाति-स्मरण ज्ञान के समय भी शुभयोग-शुभलेश्या होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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