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________________ ( २८२ ) इत्याभ्यां वा सूत्राभ्यामवसीयते यथा न सम्यमिथ्याप्टे! क्रियकमिश्रकाययोगः समस्तीति। वैक्रिय काययोग और वैक्रियमिश्र काययोग संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयत सम्यग्दृष्टि तक होते हैं। समुच्चय अर्थ का बोध कराने के लिए सूत्र में 'च' शब्द का रहना अपेक्षित है, फिर 'च' शब्द के अभाव में भी कदाचित् समुच्चय रूप अर्थ का बोध होता है, यथा-'पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः' इस सूत्र में 'च' शब्द के अभाव में भी समुच्चय रूप अर्थ का बोध होता है। सूत्र के अनुसार सम्यग्मिथ्याडष्टि गुणस्थान में भी वैक्रियमिश्र काययोग होना चाहिए, किन्तु होता नहीं है, क्योंकि औदारिकमिश्र काययोग के प्रकरण में 'प्रभृति' शब्द को व्यवस्थावाची या प्रकारवाची माना गया है, अतः पूर्वोक्त दोष नहीं आता है। अथवा, 'सम्मामिच्छाइट्ठिाणे णियमा पजत्ता', 'वेग्वियमिस्स कायजोगो अपज्जताण'-अर्थाद सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में जीव नियम से पर्याप्त रहते हैं तथा वैक्रियमिथ काययोग अपर्याप्तों में होता है-इन दोनों सूत्रों के आधार पर सभ्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में वैक्रियमिश्र काययोग नहीं होता है । .१२ कम्मइयकायजोगो एइंदियप्पहुडि जाप सजोगिकेवलि त्ति । -षट् ० १ । १ सू ६४ पु १ । पृ० ३०७ टीका-देशषिरतादिक्षीणकषायान्तानामपि कार्मणकाययोगस्यास्तित्वं प्राप्नोत्यस्मात्सूत्रादिति चेन्न, 'संजदासंजदट्ठाणे णियमा पजत्ता' इत्येतस्मा सूत्रात्तत्र तदभावावगतः। न च समुद्घाताहते पर्याप्तानांकामणकाययोगोऽस्ति । किमिति स तत्र नास्तीति चेद्विग्रहगतेरभावात्। देवविद्याधरादीनां पर्याप्तानामपि वक्रा गतिरुपलभ्यते चेन्न, पूर्वशरीरं परित्यज्योत्तरशरीरमादातुं ब्रजतो चक्रगतेविवक्षितत्वात्। कार्मण काययोंग एकेन्द्रिय से लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक होता है। यद्यपि सूत्र के अनुसार देशविरत गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तक भी कामणकाययोग का सद्भाव प्राप्त होता है, परन्तु ऐसा होता नहीं है, क्योंकि सूत्र है'संजदासजदठाणे णियमा पज्जत्ता' अर्थात् संयतासंयत गुणस्थान में जीव नियम से पर्याप्त होते हैं । ( इस सूत्र में संयतासंयत शब्द उपलक्षण है, अतः पंचम गुणस्थान से ऊपर सभी गुणस्थानों का सूचक है।) और, समुद्घात के अतिरिक्त पर्याप्त जीवों में कामण काययोग नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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