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________________ ( २६८ ) एवं णो पुढविकाइयाणं गमो सो चेव भाणियम्बो x x x | तेक्काइया० x x x एवं चेव । वाउकारयाणं एवं खेव । वणस्सकाइया० - सेसंजहा तेउकाइयाणं जाव उब्वट्टति | पृथ्वीकायिक जीवों की तरह इनमें एक काययोग होता है । विवेचन - एकेन्द्रियपने उत्पन्न हुए जिनको उत्पन्न हुए एक समय हुआ है और जो कृतयुग्मकृतयुग्म राशि रूप है - ऐसे एकेन्द्रिय जीव को प्रथम समय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रिय कहते हैं । २ जिनको उत्पन्न हुए द्वितीयादि समय हो गये हैं वे अप्रथम समय में आते हैं । ३ 'चरम समय' शब्द से यहाँ एकेन्द्रियों का मरण समय विवक्षित है और यह उनके परभव आयु का प्रथम समय जानना चाहिए । ४ जिन एकेन्द्रिय जीवों का उपर्युक्त चरम समय नहीं है वे अचरम समय है । ५ प्रथम समय में उत्पन्न और कृतयुग्मकृतयुग्मत्व के अनुभव के प्रथम समय में वर्तमान एकेन्द्रिय जीवों के काय योग होता है । '१०८ जीव समूहों में योग '१ योग और जीव -- भग० श १६ । ३३ । सू १७ मनोयोग किसके होता है ? सण्णिमिच्छा इट्टिप्प हुडि मणजोगो सचमणजोगो असश्वमोसमणजोगो - षट् खं १ । १ सू ५० / ५११ पृ० २८२ जाव सजोगिकेवलिति । टीका - मनोयोग इति पञ्चमो मनोयोगः क्व लब्धश्चेन्नैष दोषः, चतसृणां मनोव्यक्तीनां सामान्यस्य पञ्चमत्वोपपत्तेः किं तत्सामाभ्यमिति चेन्मनसः सादृश्यम् । मनसः समुत्पत्तये प्रयत्नो मनोयोगः । पूर्वप्रयोगात् प्रयत्नमन्तरेणापि मनसः प्रवृत्तिर्दृश्यते इति चेद्भवतु, न तेन मनसा योगोऽत्र मनोयोग इति विवक्षितः, तन्निमित्तप्रयत्न सम्बन्धस्य परिस्पन्दरूपस्य विवक्षितत्वात् । भवतु केवलिनः सत्यमनोयोगस्य सत्त्वं तत्र वस्तुयाथात्म्याचगतेः सत्वात् । नासत्यमोषमनोयोगस्य सत्त्वं तत्र संशयानध्यवसाययोरभाषादिति For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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