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________________ ( २६६ ) नीललेशी भवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय -- मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी होते हैं । • ३४ कापोतलेशी भवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संशी पंचेन्द्रिय में योग • ३५ तेजोलेशी • ३६ पद्मलेशी • ३७ शुक्ललेशी " एवं जहा ओहियाणि लण्णि पंचिदियाणं सत्त स्याणि भणियाणि । एवं भवसिद्धिएहि विसत्त सयाणि कायव्वाणि । × × × 1 - भग० श ४० । श ११ से १४ कापोतलेशी, तेजोलेशी, पद्मलेशी, शुक्ललेशी भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म संशी पंचेन्द्रिय मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी होते हैं । " प्रथम समय अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग- ( पढमसमय अभबसिद्धिय कडजुम्मकडजुम्मसण्णि-पंचिंदिया ) जहा सणीण पढमसमयउद्देसए तहेव x x एवं एत्थ वि एक्कारस उद्देसगा काथव्या । - भग० श ४० । श १५ होते है । "" प्रथम समय अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय - काययोगी होते है । मनोयोगी, वचनयोगी नहीं होते है । ग्यारह उद्देशक में से आठ में काययोगी होते हैं । तथा तीन में तीन योग होते हैं । अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग ( अभषसिद्धिय कडजुम्मकडजुम्मसण्णि-पंचिंदिया ) xxx सेसं जहा कण्हले सलए जाव अनंतखुतो । - भग० श ४० । श १५ अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय – मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी काययोगी होते है । कृष्णलेशी अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग ( कण्हलेस अभवसिद्धिय - कडजुम्मकडजुम्मसण्णि - पंचिंदिया ) जहा एएसि चेष ओहियं सयं जहा कण्हलेस्सलयं पि । x x x Jain Education International -भग० श ४० । श १६ कृष्णलेशी अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय- मनोयोगी, वचनयोगी, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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