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________________ ( 25 ) समुदघातके पहले और आठवें समय औदारिक काययोमा होता है । दारे, खाने तथा सातवें समय में औदारिक मिध काय योग होता है। तीसरे, चौथे तथा पाँचवें समयमें कामण काय योग होता है परन्तु केवली समुद्घात के आठों समय में शुद्ध लेश्या होती है। यद्यपि द्रव्य कामण काय योग चतुःस्पर्शी है परन्तु द्रव्य शुद्ध लेश्या अष्टस्पर्शी है। अस्तु योग पन्द्रह होते है। केवली समुद्घात के समय केवल तीन योग होते हैं। शेष बारह योग नहीं होते है। साधु के पांच मंडली भोज के दोष में पहला संयोग है। स्वाद के लिए खाद्य वस्तुओं का संयोग करना संयोग दोष है । जब सयोगी केवली के मन-वचन-योग या निरोध हो जाता है पर काययोग का पूर्ण निरोध नहीं होता उस स्थिति में सूक्ष्म-क्रिया-अप्रतिपाती शुक्लम्यान होता है । काययोग की शेष प्रवृत्तियों को क्षीण करने पर शैलेशी अवस्था प्राप्त होती है। उसमें पूर्ण योग निरोध हो जाता है। वहाँ समुच्छिन्न-क्रिया-अनिवृत्ति शुक्लध्यान होता है। ईयादि पाँच समिति में आत्मा एक योग होती है । भाव जीव में आत्मायोग आदि सात आत्मा होती है। योग आत्मा में पाँच भाव होते हैं। योग आत्मा उत्तर गुण है परन्तु चारित्र आत्मा मूलगुण है । बीस आस्रव में सोलह आस्रव (मिथ्यात्व, अवत, प्रमाद व कषाय को छोड़कर) योग आत्मा है। बीस संवर में अयोग-मन-वचन-काय ने चार संवार भाव एक पारिणामिक है तथा आत्मा अनेरी माना है । पन्द्रह योगों में-सत्यमन, सत्यभाषा, व्यवहारमन, व्यवहार भाषा, औदारिकइन पाँच योग में भाव पाँचों होते है । औदारिक मिश्र, कामणमें भाव तीन-उदय-क्षायिक पारिणामिक । आहारक, वैक्रिय में भाव तीन-उदय, क्षयोपशम व पारिणामिक । अवशेष छह योग में भाव दो उदय-पारिणामिक होते हैं । ऐसी कतिपय आचार्यों की मान्यता है । द्रव्ययोग अजीव तथा भावयोग जीव है । द्रव्ययोग रूपी ; भाययोग अरूपी है। असत्यमन, असत्यभाषा, मिश्रमन, मिश्रभाषा, आहारिकमिश्र तथा वैक्रियमिश्र-ये छः योग सावद्य है । अवशेष नौ योग-सावद्य-निरवद्य दोनों है। चारमनोयोग, चारवचनयोग और एककामण-ये नौ योग चतुःस्पशी है शेष छः अष्टस्पशी है । असत्य मन, असत्यभाषा, मिश्रमन, मिश्रभाषा, वे क्रियमिश्र तथा आहारकमिश्र ये छः योग नवतत्व में जीव व आश्रव है; अवशेष नौ योग आश्रव, जीव व निर्जरा है। योग तथा लेश्या परिणामी में भाव पाँच तथा आत्मा एक योग माना है। योग परिणाम नौ तत्व में जीव, आस्रव व निर्जरा है। मन, वचन-काय एवं योग आस्रव-ये चार आस्रव सावद्य-निरवद्य दोनों है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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