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________________ ( १६८ ) .०१ औधिक जीषों में (ख) तिविहे जोगे पण्णत्ते, तं जहा---मणजोगे, वइजोगे, कायजोगे । एवं. णेरइयाणं विगलिंदयवजाणं जाव वेमाणियाणं । -ठाणा० स्था ३ । उ १ । सू १३ । पृ० ५४१ टीका-सामान्येन योगं प्ररूप्य विशेषतो नारकादिषु चतुर्विशतौ पदेषु तमतिदिशन्नाह-एव' मिथ्यादि, कण्ठ्यं नवरमतिप्रसंगपरिहारायेदमुक्त'"विगलिंदियवजाणं” ति तत्र विकलेन्द्रियाः-अपच्चेन्द्रियाः,तेषां ह येकेन्द्रियाणां काययोग एव, द्वित्रिचतुरिन्द्रियाणां तु काययोग-वाग्योगाविति । (ग) चउब्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु तं जहा-मणजोगी वइजोगी कायजोगी अजोगी। -जीवा० प्रति ६ । सू २५७ । पृ ४४६ (घ) जीवाणं भंते ! कतिविधे पओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! पण्णरसविधे पण्णत्ते, सञ्चमणप्पओगे असञ्चमणप्पओगे २ सञ्चामोसमणप्पओगे ३ असञ्चामोसमणप्पओगे ४ सचावइप्पओगे ५ असच्चवइप्पओगे ६ सञ्चामोसवइप्पओगे ७ असञ्चामोसवइप्पओगे ८ ओरालियसरीर कायप्पओगे ९ ओरालियमीस सरीर. कायप्पओगे १० वेउब्वियसरीरकायप्पओगे ११ वेउम्वियमीससरीरकायप्पओगे १२ आहारकसरीरकायप्पओगे १३ आहारकमीससरीरकायप्पओगे १४ (जाब) कम्मासरीरकायप्पओगे १५। -पण्ण प १६ । सू१०६६ । पृ. २६२ __समास मैं योग तीन होते हैं जो विकलेन्द्रिय अर्थात् एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को छोड़कर अवशेष सभी जीवों में होते हैं, क्योंकि एकेन्द्रियों में केवल काययोग होता है तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में काययोग और वचनयोग होते हैं। योग की अपेक्षा सब जीव चार प्रकार के होते हैं, यथा-मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी तथा अयोगी। औधिक जीवों में पन्द्रह प्रयोग अर्थात् प्रकर्षता से युज्यमान योग होते हैं, यथासत्यमनोप्रयोग यावत् काम ण शरीर काय प्रयोग। .०१.०१ औधिक अपर्याप्त जीवों में संपहि अपजति-पजाय-विसिहे ओघे भण्णमाणे अस्थि मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी पमत्तसंजदा सजोगिकेवलि त्ति पंच गुणट्ठाणाणि xxx ओरालियमिस्स-वेउब्धियमिस्स-आहारमिस्स-कम्मइयकायजोगेत्ति चत्तारि जोगा xxx | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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