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________________ ( १६७ ) कायजोगो वा इदि ? न, अन्तर्जल्पप्रयत्नस्य कायगत सूक्ष्मप्रयत्नस्य च सत्र सत्त्वात्। x x x | पढम-अणियट्ठीणं भण्णमाणे अस्थि xxx णव जोग x x x | विदिय द्वाणट्ठिद-अणियट्टीणं भण्णमाणे अस्थि xxx णव जोग x x x। तदियट्ठाण-हिद-अणियट्टीणं भण्णमाणे अत्थि x x x णव जोग x x x | उ हाण-हिदअणियट्ठीणं भण्णमाणे अस्थि xxx णव जोग xxx। पंचम-ट्ठाण-हिद-अणियहीणं भण्णमाणे अस्थि x x x णव जोग xxx। सुहमसांपराइयाणमोघालावे भण्णमाणे अस्थि x x x णघ जोग x x x । उवसंतकसायाणमोघालावे भण्णमाणे अस्थि xxx णष जोग x xx। खीणकसायाणं भण्णमाणे अस्थि xxx णघ जोग x x x | सजोगिकेवलीण भण्णमाणे अस्थि x x x सत्त जोग, सञ्चमणजोगो असञ्चमोसमणजोगो सञ्चवचिजोगो असश्चमोसवचिजोगो ओरालियकायजोगो कवाडगदस्स ओरालियमिस्सकायजोगो पदर-लोगपूरणेसु कम्मइयकायजोगो, एवं सजोगिकेलिस्स सत्त जोगा भवंति । xxxअजोगिकेवलीणं भण्णमाणे अस्थि x x x अजोगो xxx। -षट • खं १, । टीका पु २ । पृ० ४१५-४७ औधिक जीव में पन्द्रह योग होते हैं तथा अयोगावस्था भी होती है। विभिन्न गुणस्थानवी औधिक जीव में योग का सद्भाव इस प्रकार होता है। औधिक मिथ्याष्टि जीव में आहारक और आहारक मिश्र के व्यतिरिक्त तेरह योग होते हैं । सासादन सम्यग्दृष्टि जीव में तेरह योग। सम्यग-मिथ्यादृष्टि जीव में दस योग। असंयत सम्यग्दृष्टि जीव में तेरह योग। संयतासंयत जीव में नौ योग। प्रमत्तसंयत जीव में ग्यारह योग। अप्रमत्त संयत जीव में नौ योग होते हैं। अपूर्व करण जीव में नौ योग होते हैं। ध्यानस्थ अपूर्व करण जीव में वचनबल का अस्तित्व तो रहता ही है, क्योंकि भाषायर्याप्ति संज्ञक पुद्गलस्कन्धों से उत्पन्न शक्ति का सद्भाव रहता है ; अतएव वचनयोग और काययोग का भी सद्भाव मानना चाहिए, क्योंकि अन्तजल्प के लिए प्रयत्न तथा कायगत सूक्ष्म प्रयत्न का भी उस अवस्था में सद्भाव रहता है। अनिवृत्तबादर ( करण ) जीव के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतर्थ और पंचम स्थान में नौ योग/सूक्ष्मसंपराय जीव में नौ योग/उपशान्तकषाय जीव में नौ योग/क्षीणकषाय जीव में नौ योग होते हैं। सयोगिकेवली जीव में सत्यमनोयोग, असत्यामृषा मनोयोग, सत्यवचन योग, असत्यामृषा वचनयोग, औदारिक काययोग, कपाट समुद्घातको प्राप्त सयोगिकेवली में औदारिकमिश्र काययोग, लोकपूरण समुद्घात में कार्मण काययोग-इस प्रकार सात योग होते हैं । अयोगिकेवली जीव में योग का सद्भाव नहीं रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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