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________________ ( १५३ ) यदि दो द्रव्य मनःप्रयोग परिणत होते हैं तो ( १-४ ) वे सत्य मनःप्रयोग होते हैं, अथवा यावत् असत्यामृषा मनःप्रयोग परिणत होते हैं । अथवा (५) उनमें से एक द्रव्य सत्य मनःप्रयोग परिणत होता है और दूसरा मृषा मनःप्रयोग परिणत होता है । अथवा (६) एक द्रव्य सत्य मनःप्रयोग परिणत होता है और दूसरा सत्य मृषा मनःप्रयोग परिणत होता है अथवा (७) एक द्रव्य सत्य मनःप्रयोग परिणत होता है और दूसरा असत्यामृषा मनःप्रयोग परिणत होता है अथया (८) एक द्रव्य मृषा मनःप्रयोग परिणत होता है । और दूसरा सत्य मृषामनःप्रयोग परिणत होता है अथवा ( ६ ) एक द्रव्य मृषामनःप्रयोग परिणत होता है और दूसरा असल्यामृषामनः प्रयोग परिणत होता है अथवा (१०) एक द्रव्य सत्यमृषामनः प्रयोग परिणत होता है और दूसरा असत्यामृषामनः प्रयोग परिणत होता है । यदि दो द्रव्य सत्य मनः प्रयोग परिणत होते हैं तो ( १-६ ) वे दो द्रव्य आरम्भ सत्यमनः प्रयोग परिणत होते हैं, अथवा यावत् असमारम्भ सत्यमनःप्रयोग परिणत होते हैं अथवा एक द्रव्य आरम्भ सत्यमनाप्रयोग परिणत होता है और दूसरा अनारम्भ सत्यमनः प्रयोग परिणत होता है । इस प्रकार द्विक संयोगी भांगे जानने चाहिए । जहाँ जितने द्विक संयोगी भांगे होते हैं, वहाँ उतने सभी कहना चाहिए। यावत् सर्वार्थसिद्ध वैमानिक देव पर्यंत कहना चाहिए । विवेचन - दो द्रव्यों के विषय में प्रयोग परिणत असंयोगी तीन भंग होते हैं और द्विक संयोगी भी तीन भंग होते हैं । इस प्रकार छः भंग होते हैं । सत्यमनःप्रयोग परिणत, मृषामनःप्रयोगपरिणत, सत्यमृषामनाप्रयोगपरिणत और असत्यामृषामनःप्रयोग परिणत – इन चार पदों असंयोगी चार भंग होते हैं और द्विक्संयोगी छह भंग होते हैं । इस प्रकार इनके कुल दस भंग होते हैं ? .०११ सयोगी जीव और तीन द्रव्य-परिणाम (तीन) तिन्नि भंते! दव्वा किं पओगपरिणया × × × जर पओगपरिणया कि मणप्पगपरिणया, वयष्पओगपरिणया कायप्पओगपरिणया ! गोयमा ! ओगपरिणया वा, एवं एक्कगसंजोगो, दुयासंजोगो तिया संजोगो भाणियव्वो । जर मणप्पभोगपरिणया कि सचमणष्पओगपरिणया, असच्च मणपभोगपरिणया सच्चामोसमणप्पओगपरिणया असच्चा मोसमणप्पओगपरिणया ? गोयमा ! सचमणप्पओगपरिणया वा, असश्चामोसमणप्पओगपरिणया वा; अहवा एगे सश्चमणप्पओगपरिणए दो मोसमणप्पओगपरिणया बा। एवं दुयासंजोगो, तिया संजोगो भाणियन्वो एत्थवि तहेव × × × । - भग० श द उ १ प्र ६४-६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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