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________________ ( १०० ) के सर्वक्षय के द्वारा वीर्यलब्धि होती है। इस वीर्यलब्धि की संप्राप्ति से उत्पन्न होनेवाला वीर्य सलेशी और अलेशी दोनों के होता है। किन्तु यहाँ पर सलेशी के ही वीर्य का कथन है, जिसको 'अभिसंधिमियरं' इस गाथा से स्पष्ट किया गया है। अब यहाँ क्षायिक और क्षायोपशमिक रूप वीर्यलब्धि से उत्पन्न सलेशी का वीर्य अभिसन्धिज है या अनभिसन्धिज ? जो वीर्य बुद्धिपूर्वक धावन-वल्गनादि क्रियाओं में नियोजित किया जाता है वह अभिसन्धिज है, इससे भिन्न अनभिसन्धिज है यथा--जीव द्वारा भुक्त आहार का धातु-मल आदि रूप से परिणमन का कारण होता है तथा एकेन्द्रियों के अपनी क्रियाओं में निबन्धन होता है। यह अभिसन्धिज और अनभिसन्धिज वीर्य यथासंभव अवश्य ही सूक्ष्म और बादर जीवों के परिस्पन्दन रूप क्रिया से युक्त होता है - इसी को योग भी कहते हैं। ये एकार्थक शब्द कहे गये हैं-योग, वीर्य, स्थाम, उत्साह, पराक्रम, चेष्टा, शक्ति और सामर्थ्य । .६ मलयगिरि : (क) इहयोगे सति लेश्या भवति, योगाभावे व न भवति ततो योगेन सहान्धय व्यतिरेक दर्शनात् योगनिमित्ता लेश्येति निश्चीयते, सर्वत्रापि तन्निमित्तत्वनिश्चयल्यान्वयव्यतिरेक दर्शनामूलत्वात, योगनिमित्ततायामपि विकल्प द्वयमवतरति किं योगान्तरगत द्रव्यरूपा योगनिमित्त-कर्मद्रव्यरूपा वा तत्र न ताचद्योग निमित्त कर्मद्रव्यरूपा, विकल्प द्वयामतिक्रमात्, तथाहि-योग-निमित्त कर्मद्रव्यरूपा सतीघाति कमद्रव्यरूपा अघातिकर्मद्रव्यरूपा वा ? न तावद् घातिकर्मद्रव्यरूपा, तेषामभावेऽपि सयोगिकेवलिनि लेश्यायाः सद्भावात्, नापि अघातिकर्मरूपा तत्सद्भावेऽपि अयोगिकेवलिनि लेश्याया अभावात्, ततः पारिशेष्यात् योगान्तर्गत द्रव्यरूपा प्रत्येया। तानि च योगान्तर्गतानि द्रव्याणि यावत्कषायास्तावत्तेषामदप्युयोपवृहकाणि भवन्ति, दृष्टं च योगान्तरगतानां द्रव्याणां कषायोदयोपबृहणसामयम् । यथापित्त द्रव्यस्य तथाहि xxx केबलं योगान्तर्गत द्रव्य सहकारिकारण भेदवैचित्र्याभ्यां तेकृष्णादिभेदैभिन्नाः xxx तेन यदुच्यते कैश्चिदयोगपरिणामत्वे लेश्यानाम् "जोगा पयडिपएसंठिइअणुभागं कसायओ कुणइ” इति वचनात् प्रकृतिप्रदेश बंधहेतुत्वमेवस्यान्न कर्मास्थिति हेतुत्वमिति, तदपि न समीचीनम्, यथोक्तभावार्थापरिज्ञानात् १ अपि च न लेश्या स्थितिहेतषः॥ -पण्ण० प १७ । प्रारम्भ में टीका .०७ देवेन्द्रसूरि योजनं योगः-जीवस्य वीर्य परिस्पन्द इति यावत्, यदि षा युज्यते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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