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________________ २.०७ द्रव्य लेश्या जीव ग्राह्य है ( ६१ ) द्रव्यलेश्या की तरह द्रव्ययोग भी जीव ग्राह्य है देखें - लेश्याकोश पृ० ७ .०८ द्रव्ययोग - चतुस्पर्शी भी है, अष्टस्पर्शी भी है। मणजोगे, बइजोगेय खउफासे, कायनोगे अट्ठफासे -भग० श १२ । उ ५ । सू ११७ द्रव्ये मन वचन जोग वोफरसी छै, द्रव्येकाय जोग अठफास । भगवती बार में शतक पंखमुदेशे धीर वयण सुविलासरे || -झीणीचर्चा ढाल १५ । गा २ द्रव्य मनोयोग तथा द्रव्य वचनयोग चतुःस्पर्शी है तथा काययोग अष्टस्पर्शी है । .०९ द्रव्ययोग अनन्तप्रदेशी है क्योंकि जीव द्वारा ग्राह्य है, संख्यात, असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों को जीव ग्रहण नहीं करता है । .०१० द्रव्ययोग असंख्यात् प्रदेशी क्षेत्र अवगाह करता है I लेश्या की तरह द्रव्ययोग भी असंख्यात प्रदेशी क्षेत्र अवगाह करता है देखें- लेश्या - कोश पृ० ६ .०११ द्रव्ययोग की अनन्त वर्गणा होती है । द्रव्य लेश्या की तरह द्रव्ययोग की अनन्त वर्गणा होती है - लेश्याकोश पृ० ६ .०१२ द्रव्ययोग के असंख्यात स्थान है । द्रव्यश्या की तरह द्रव्ययोग के असंख्यात स्थान है— देखें लेश्याकोश पृ० ८ '५२ भाषयोग के परिभाषा के उपयोगी पाठ '१ भाषयोग जीवपरिणाम है । जीवे परिणामे णं भंते asfer ? गोयमा ! दसविहे पम्नत्ते, तंजहागद्दपरिणामे, इन्दियपरिणामे, कसाय परिणामे, लेस्सापरिणामे, जोगपरिणामे, चरित परिणामे, वेयपरिणामे । Jain Education International २ भावयोग अवर्णी - अगंधी- अरसी - अस्पर्शी है । भावलेश्या की तरह भावयोग अवर्णी, अगंधी, अरसी अस्पर्शी है । - ( देखें लेश्या - कोश पृ० ८ ) '३ भावयोग अवर्णी, अगंधी, अरसी, अस्पर्शी तथा जीव परिणाम है अतः जीव है । - पण्ण० प० १३ । सू० - ठाण० स्था १० | सू १० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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